भागवत सुधा -करपात्री महाराजवे सुन्दर वस्त्र और मनोहर पुष्पमाला धारण करके दिव्य आभूषणों से विभूषित थे- उभौ मध्वासवक्षीबावुभौ चन्दनरूषितौ। श्रीकृष्ण के दोनों चरण अर्जुन की गोद में थे और महात्मा अर्जुन का एक पैर द्रौपदी की तथा दूसरा सत्यभामा की गोद में था। अर्जुनौत्संगौ पादौ केशवस्योपलक्षये। श्रीभगवान् ने कहा- भरी सभा में दुःशासन ने अवला, रजस्वला, एकवस्त्रा द्रौपदी का चीर खींचना आरंभ किया। उसने मुझे पुकारा- गोविन्द द्वारकावासिन् कृष्ण गोपीजनप्रिय। (हे गोविन्द! हे द्वारकावासी श्रीकृष्ण! हे गोपाअंगानाओं के प्राणबल्लभ केशव! कौरव मेरा अपमान कर रहे हैं, क्या आप नहीं जानते? हे नाथ! हे रमानाथ! हे ब्रजनाथ! हे संकट नाशन जनार्दन! मैं कौरव रूप समुद्र में डूबी जा रही हूँ, मेरा उद्धार कीजिये। श्रीकृष्ण! महायोगिन! विश्वात्मन! विश्वभावन! गोविन्द! कौरवों के बीच में कष्ट पाती हुई मुझ शरणागत अबला की रक्षा कीजिये।) ऋणेमेतत् प्रवृद्धं मे हृदयान्मापसर्पति। संजय अन्तःपुर की स्थिति को देखकर और भगवान के सन्देश को सुनकर काँप गये। इतनी अन्तरंगता! वसुदेव सर्वान्तरात्मा सर्वेश्वर जहाँ इतने अन्तरंग हैं, तब भला पाण्डवों का अकल्याण कैसे हो सकता है? मतलब यह कि द्रौपदी ने बालों को बाँधा ही नहीं था। श्रीकृष्ण भगवान् को पाण्डवों ने दूत बनाकर भेजा। द्रौपदी अपने बालों को लेकर सामने आयी। कहने लगी-श्यामसुन्दर हमारे इन बालों को ध्यान रखना। मेरी प्रतिज्ञा है। दुःशासन की भुजा उखाड़ी जायगी, उसके खून से नहाऊँगी। तब इन बालों की धोऊँगी। संजय ने धृतराष्ट्र को सब सन्देश सुना दिया। धृतराष्ट को नींद नहीं आयी। प्रजागर हो गया। विदुर जी को बुलाया। विदुर जी ने देखा इनको शान्ति किसी तरह नहीं मिल रही। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारते उद्योगपर्व0 59/5
- ↑ महाभारते उद्योगपर्व0 59/7
- ↑ महाभारत सभापर्व 68/41-43
- ↑ महाभारत उद्योग पर्व 59/22
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