भागवत सुधा -करपात्री महाराज‘भगवान् निर्गुण हैं’ कोई बात हुई, अरे अनन्त ब्रह्माण्ड को बनाने वाला ज्ञानवान, इच्छावान, क्रियावान नहीं? जो ज्ञानवान, इच्छावान, क्रियावान, क्रियावान है, वह निर्गुण कैसे? निर्गुण नहीं, भगवान सगुण हैं, सगुण। निर्गुणवादी कहते हैं- पर क्या करें। श्रुतियाँ कहती हैं, निर्गुणं निष्क्रियं सूक्ष्म’’[1] लाचारी तो इसी बात को लेकर है। इसी बात के आधार पर भागवत में प्रश्न बना- ब्रह्मन् ब्रह्मण्यनिर्देश्ये निर्गुणे गुणवृत्तयः। ( भगवन्! ब्रह्म कार्य-कारणातीत है। सत्त्व, रज, तम- ये तीनों गुण उसमें हैं नहीं। वह सर्वथा अनिर्देश्य है, मन और वाणी से संकेत रूप में भी उसका निर्देश नहीं किया जा सकता। वैसे भी श्रुतियों की प्रवृत्ति सगुण में ही होती है। वे जाति, गुण, क्रिया,सम्बन्ध अथवा रूढ़ि का ही निर्देश करती हैं। ऐसी स्थिति में श्रुतियाँ निर्गुण ब्रह्म का प्रतिपादन किस तरह करती हैं? क्यों कि निर्गुण के प्रतिपादन में उनकी पहुँच हो, ऐसा तो प्रतीत नहीं होता।) य यषेाअक्षिणि पुरुषो दृश्यत एष आत्मेति- (‘यह जो नेत्र में पुरुष दिखायी देता है, यह आत्मा है’ ऐसा उसने कहा- ‘यह अमृत है, अभय है और ब्रह्म है’ उस पुरुष के स्थान रूप नेत्र में यदि घृत या जल डालें तो वह पलकों में ही चला जाता है।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अध्यात्मोपरिषद् 62
- ↑ भागवत 10/87/1
- ↑ ‘‘अन्यदेव तद्विदिताथो अविदितादिधि’ (केनोपनिषद् 1.3) इति श्रुतेः।’’ उपपत्तेश्च सदसदादिशब्दैर्बह्म नीच्यते इति सर्वो हि शब्दोअर्थप्रकाशनाय प्रयुक्तः, श्रूयमाणश्च श्रोतृभिः, जातिक्रियागुणसम्बन्धद्वारेण संकेतग्रहसव्यपेक्षोअर्थ प्रत्याययति नान्यथा, अदृष्टत्वात्। तद्यथा गौरश्व इति वा जातितः पचति पठतीति वा क्रियातः, शुक्लः इति वा गुणतः, धनी गोमानिति वा सम्बन्धतः। न तु ब्रह्म जातिमत् अतो न सदादिशब्दवाच्यम्। नापि गुणवद् येन गुणशब्देनोच्यते निर्गुणत्वात्। नापि क्रियाशब्दवाच्यं निष्क्रियत्वात् ‘निष्कलं निष्कियं शान्तम्’ प्रत्याययति, नान्यथा श्रदृष्टत्वात्। (श्वेता 6.19) इति श्रुतेः। न च सम्बन्धी एकत्वात्। अद्वयत्वादविषयत्वादात्मत्वाच्च न केनचिच्छब्देनोच्यत इति युक्तं, ‘यतो वाचो निवर्तन्ते’ (तैतिरीयोप0 2.9) इत्यादि श्रुतिभिश्च। (शांकरभाष्य गीता। 13.12)
- ↑ जहदजहत्स्वार्थलक्षणया सोअयं देवदत्त इतिवद्विरुद्धांशत्यागेनानुगतचिदंशेनैकाथेन सामानाधिकरण्येन निर्गुणे पर्यवसानम्। अस्थूलादिवाक्यानां तु साक्षादुपाधि निषेधेन तत्पदार्थशोधन उपयोगान्निर्गुण एव पर्यवसानम्।(श्रीधरी भागवत 10/87/2)
- ↑ तैत्तिरीयोपनिषद् 3/1
- ↑ छान्दोग्योपनिषद् 4/12/1-4
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