श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
माखन चोरी का रहस्य
रातों गोपियाँ जाग-जागकर प्रातःकाल होने की बाट देखतीं। उनका मन श्रीकृष्ण में लगा रहता। प्रातःकाल जल्दी-जल्दी दही मथकर, माखन निकालकर छींकेपर रखतीं। कहीं प्राणधन आकर लौट न जायँ, इसीजिये सब काम छोड़कर वे सबसे पहले यही काम करतीं और श्यामसुन्दर की प्रतीक्षा में व्याकुल होती हुई मन-ही-मन सोचतीं-हा! आज प्राणप्रियतम क्यों नहीं आये? इतनी देर क्यों हो गयी? क्या आज इस दासी का घर पवित्र न करेंगे? क्या आज मेरे समर्पण किये हुए इस तुच्छ माखन का भोग लगाकर स्वयं सुखी होकर मुझे सुख न देंगे? कहीं यशोदा मैया ने तो उन्हें नहीं रोक लिया? उनके घर तो नौ लाख गौएँ हैं। माखन की क्या कमी है! मेरे घर तो वे कृपा करके ही आते हैं! इन्हीं विचारों में आँसू बहाती हुई गोपी क्षण-क्षण में दौड़कर दरवाजे पर जाती। लाज छोड़कर रास्ते की ओर देखती। सखियों से पूछती। एक-एक निमेष उसके लिये युग के समान हो जाता। ऐसी भाग्यवती गोपियों की मनःकामना भगवान उनके घर पधारकर पूर्ण करते। सूरदास जी ने गाया है-
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