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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-श्रीकृष्ण का नित्यरूप‘मनोरञ्जन’ का प्रश्न इस समय बहुत महत्त्व का हो गया है। घर-द्वार फूँककर, धर्म-कर्म खोकर, शील-संकोच और लज्जा-मर्यादा का नाश करके भी ‘मनोरञ्जन’ करना है। ‘मनोरञ्जन’ का इस प्रकार यह महारोग बहुत नवीन है, पर यह बहुत ही व्यापक हो गया है।....... सिनेमा से लोगों ने चोरी की नयी-नयी कलाएँ सीखीं, डाके डालने सीखे, शराब पीना सीखा, निर्लज्जता सीखी और भीषण व्यभिचार सीखा, फिर भी हम इसे ‘मनोरञ्जन’ ही मानते हैं। (सिनेमा-मनोरञ्जन या विनाश का साधन नाम पुस्तक से)जिस प्रकार स्त्रियों का जेल की कालकोठरी की तरह बंद रहना उसके लिये हानिकहर है, उसी प्रकार- वह उससे भी बढ़कर हानिकर उनका स्त्रियोचित लज्जा को छोड़कर पुरुषों के साथ निरंकुश रूप से घूमना-फिरना, पार्टियों में शामिल होना, पर-पुरुषों से निःसंकोच मिलना, सिनेमा तथा गंदे खेल-तमाशों में जाना, पर-पुरुषों के साथ खान-पान तथा नृत्यगीतादि करना आदि है। नारी के पास सबसे मूल्यवान् और आदरणीय सम्पत्ति है उसका सतीत्व। सतीत्व की रक्षा ही उसके जीवने का सर्वोच्च ध्येय है। (नारी-शिक्षा नामक पुस्तक से)गोपी-प्रेम में राग का अभाव नहीं है, परन्तु वह राग सब जगह से सिमट कर, भुक्ति और मुक्ति के दुर्गम प्रलोभन वह पर्वतों को लाँघकर केवल श्रीकृष्ण में अर्पण हो गया है। इहलोक और परलोक में गोपियाँ श्रीकृष्ण के सिवा अन्य किसी को भी नहीं जानतीं। (आनन्द गोपी-प्रेम नामक पुस्तक से) |
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