श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीयुगल-स्वरूप की उपासना
एक सज्जन ने बहुत-से प्रश्न लिख भेजे हैं और बड़े आग्रह के साथ अपने प्रश्नों के उत्तर देने की आज्ञा की है। उनके आज्ञानुसार प्रश्नों का उत्तर लिखने का प्रयत्न किया जाता है। (क) प्रश्न-कुछ लोग कहते हैं कि भगवान की उपासना उनकी शक्ति-सहित करनी चाहिये और कुछ लोग कहते हैं कि अकेले भगवान की उपासना करनी चाहिये। इन दोनों में कौन-सी बात ठीक है? उत्तर- भगवान और भगवान की शक्ति दो अलग-अलग वस्तु नहीं हैं। जैसे अग्नि और उसकी दाहिकाशक्ति एक ही वस्तु हैं‚ उसी प्रकार भगवान और उनकी शक्ति है। दाहिकाशक्ति है‚ इसीलिये वह अग्नि है; नहीं तो उसका व्यक्त अग्नित्व ही नहीं रहता और अग्नि न हो तो दाहिकाशक्ति का कोई आधार नहीं रहता। अतएव दोनों मिलकर ही एक अग्नि बने हैं या अग्नि के ही ये दो नाम हैं। इसी प्रकार भगवान और भगवान की शक्ति सर्वथा अभिन्न हैं‚ इनमें भेद मानना ही पाप है। इस दृष्टि से जो भगवान की उपासना करता है‚ वो उनकी शक्ति की उपासना करता ही है और जो शक्ति का उपासक है‚ वह भगवान की उपासना करने को बाध्य है; अतएव एक की उपासना में दोनों की उपासना आप ही हो जाती है। परंतु उपासक यदि चाहें तो विग्रह के रूप में दोनों की अलग-अलग मूर्तियों में भी उपासना कर सकते हैं। इतना याद रखना चाहिये कि लक्ष्मी-नारायण‚ गौरी-शंकर‚ राधा-कृष्ण‚ सीता-राम आदि सब एक ही हैं; इनमें अपनी-अपनी रुचि और भावना के अनुसार किसी भी युगल रूप की उपासना हो सकती है। यहाँ इतना अवश्य कह देना चाहिये कि युगल रूप की उपासना विशेष अधिकारी को ही करनी चाहिये। नहीं तो‚ उसमें अनर्थ होने का डर है। जगज्जननी लक्ष्मी‚ उमा‚ राधा या सीता के स्वरूप में कहीं पाप भावना हो गयी तो सारी उपासना नष्ट होकर उलटा विपरीत फल हो सकता है; और जो लोग वैराग्यवान् नहीं हैं‚ उनके द्वारा स्त्री रूप की उपासना में मन में विकार होने का डर है ही; क्योंकि ऐसे लोग भगवान की दिव्य स्वरूपा शक्ति के तत्त्व को न जानकर अपने अज्ञान से इन्हें प्राकृत स्त्री ही समझ लेते हैं और प्राकृत स्त्री रूप का आरोप करके विषयासक्ति के कारण विकार के वश हो जाते हैं। भगवान की रासलीला देखने वाले मनुष्य ने तथा श्रीराधाजी का ध्यान करने वाले एक दूसरे मित्र ने अपनी ऐसी दुर्घटनाएँ सुनायी थीं; इससे यह पता चलता है कि दिव्य अनन्तसौन्दर्य-सुधामयी इन स्वरूपा शक्तियों के साथ भगवान की उपासना करने वाले सच्चे अधिकारी बिरले ही होते हैं। |
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