श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्ण-लीलानुकरण हानिकारकजो लोग श्रीकृष्ण का स्वाँग सजकर गोपीभाव से स्त्रियों से पूजा कराते हैं, मेरी तुच्छ समझ से वे बड़ी भारी भूल करते हैं। यह सत्य है कि यह सारा जगत् परमात्मा की अभिव्यक्ति है, इसके निमित्तोपादान कारण परमात्मा ही होने से यह परमात्मस्वरूप ही है और इस दृष्टि से देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग- सभी को परमात्मा का स्वरूप समझना आवश्यकता है; परंतु परमात्मा का यह पूर्ण रूप नहीं है। यह तो अंश मात्र है। यद्यपि सब कुछ परमात्मा है, किंतु परमात्मा यह ‘सब कुछ’ ही नहीं है - परमात्मा इस ‘सब कुछ’ से परे अनन्त है और वह अनन्त परमात्मा श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है, इससे श्रीकृष्ण से ही सब व्याप्त हैं - यह ठीक ही है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ही है- ‘मेरी अव्यक्त मूर्ति से (परमात्मा विभु से) सारा जगत् व्याप्त है।’ परंतु यही (जगत् ही) श्रीकृष्ण नहीं है। अतएव श्रीकृष्ण का स्वाँग रासलीला के खेल में चाहे आ सकता है; परंतु कोई मनुष्य वस्तुतः श्रीकृष्ण बनकर लोगों से अपने को पुजवाये, यह तो बहुत ही अनुचित है और पूजने वाले भी बड़ी भूल करते हैं। माना कि स्त्रियाँ श्रद्धालु हैं, भले घरों की हैं और शुद्ध भाव से ही ऐसा करती हैं; परंतु यह क्रिया वास्तव में आदर्श के विरुद्ध और हानिकारक है। यह भी माना कि महात्मा निर्विकार हैं; परंतु उनका भी आदर्श तो बिगड़ता ही है और यदि वे साधक हैं तो इस निर्विकारता का बहुत दिनों तक टिकना भगवान की असीम कृपा से ही सम्भव है। ऐसी स्थिति में जो शुद्ध भाव से इस कार्य का प्रतिवाद करते हैं, वे न तो कोई दोष करते हैं और न अनुचित ही करते हैं। मेरी समझ से यदि उनका भाव द्वेष रहित और शुद्ध है तो वे पाप के भागी नहीं होते। श्रीकृष्ण मेरी समझ से महापुरुष या सिद्ध महात्मा ही नहीं हैं; वे साक्षात परब्रह्म, पूर्णब्रह्म सनातन पुरुषोत्तम स्वयं भगवान हैं। उनका शरीर पान्चभौतिक-मायिक नहीं है, वे नित्य सच्चिदानन्द-विग्रह हैं और गोपीजन भी दिव्य शरीर युक्ता साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण की स्वरूपभूता ह्लादिनी शक्ति की घनीभूत दिव्य मूर्तियाँ हैं। पद्मपुराण में श्रीगोपीजन के सम्बन्ध में कहा गया है-
‘गोपियों को श्रुतियाँ, ऋषियों का अवतार, देवकन्या और गोपकन्या जानना चाहिये। वे मनुष्य कभी नहीं हैं।’ |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ गीता 9। 4
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