श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रियतम की प्राप्ति कण्टकाकीर्ण मार्ग से ही होती हैभगवत्प्रेम बड़ी दुर्लभ वस्तु है। इसे पाने के लिये अपना सब कुछ बलिदान करना होता है। भक्तों को बड़ी कठोर परीक्षाओं में होकर निकलना पड़ता है। बिना तपाये स्वर्ण में कान्ति भी तो नहीं आती। प्रह्लाद, गोपीजन, मीराँ आदि सभी भक्तों को क्या-क्या कष्ट नहीं सहने पड़े। प्रियतम की प्राप्ति बड़े कण्टकाकीर्ण मार्ग से होती है। योग और भोग एक स्थान में नहीं रह सकते। अतः सच्चे प्रेमी इन आपत्तियों की परवाह नहीं किया करते। यह तो हुई सिद्धान्त की बात। सच्चे प्रेमी के लिये दो ही मार्ग हैं- वह य तो सब कुछ सहन करे या सबको त्याग दे। यदि ऐसा करने की अपनी शक्ति न हो तो युक्ति से काम लेना चहिये। इसका उपाय है- नाम-जप, सत्संग, भगवत्सेवा के भाव से जीव मात्र की प्रेम पूर्वक सेवा, भगवान की दया एवं करुणा से प्रेरित लीलाकथाओं का श्रवण-पठन आदि। यदि बाह्य पूजा-पाठ से घर वालों को अप्रसन्नता होती है तो न सही, आपके हृदय में भगवान के प्रति जो प्रेम है, उसे कौन छीन सकता है। आप हृदय से ही उनका चिन्तन और जब अवकाश मिले, तब कातर कण्ठ से प्रार्थना करें। |
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