श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेम पथ पर विरला ही चल सकता हैभगवान के प्रेम को प्राप्त करना सहज बात नहीं। प्रेम मुँह की चीज नहीं प्रेम की बातें बनाने वाले बहुत मिल सकते हैं, पर प्रेम पथ पर कोई विरला वीर ही चल सकता है। जब तक जगत के भोगों में आसक्ति है, शरीर के आराम की चिन्ता है, यश-कीर्ति का मोह है, तब तक प्रेम की ओर निहाराना भी मना है। प्रेम के मार्गपर वही वीर चल सकता है, जिसने वैराग्य के दावानल में विषयासक्ति को सदा के लिये जला डाला हो। प्रेमिका मीराँ कहती है- प्रेम के पथ पर वही पग रख सकता है, जो प्रेम-मार्ग के काँटो को फूलों की शय्या, प्रेमास्पद के लिये हुए तिरस्कार को पुरस्कार, महान् विपत्ति को सुख-सम्पत्ति, अपमान को सम्मान और अयश को यश समझता है। उसका पथ ही उलटा होता है। वह कोई ऐसा घृणित कार्य कभी नहीं करता, जिससे उसका अपमान, तिरस्कार, तिरस्कार हो या उस पर विपत्ति आये तथापि वह तिरस्कार और विपत्ति को प्रेम मिलन का मार्ग समझकर उनका स्वागत करता है, उनसे चिपटे रहता है। प्रेम पंथियों को प्रेमियों के निम्नलिखित शब्द याद रखने चाहिये।
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