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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव की एकरूपताराधा-कृष्ण स्त्री-पुरुष नहीं है। हमारी तरह से कर्म से पैदा होने वाले पान्चभौतिक देहधारी जीव नहीं हैं। वे साक्षात सच्चिदानन्दघन स्वरूप हैं और एक ही लीला के लिये दो रूपों में प्रकट हैं।...........राधा श्रीकृष्ण की स्वरूपभूता शक्ति हैं। राधा श्रीकृष्ण हैं, श्रीकृष्ण राधा हैं।...........राधा भगवान श्रीकृष्ण की स्त्री नहीं हैं, राधा भगवान हैं। भगवान (श्रीकृष्ण) राधा के पति नहीं, भगवान राधा हैं।.................और राधा-कृष्ण स्त्री-पुरुष भी हैं, पति-पत्नी भी है, प्रकृति-पुरुष भी हैं, पुरुषोत्तम भी हैं, दोनों एक ही हैं, दोनों की महिमा कौन जान सकता है।
श्रीराधा-कृष्ण एक ही तत्त्व हैंप्रिय महोदय! सप्रेम हरिस्मरण। आपका कृपा पत्र मिला। उत्तर में निवेदन है कि श्रीराधा तथा श्रीकृष्ण वस्तुतः एक ही तत्त्व के दो नाम-रूप हैं। इनका नित्य अभेदरूप सम्बन्ध है। अतः इनके विवाह होने, न होने का प्रश्न ही नहीं उठता। विवाह तो लौकिक जीवों में होता है। तथापि ब्रह्मवैवर्तपुराण में इनके विवाह की बात भी आती है। इनकी लीला नित्य है और नित्य ही ये अपने ही एक तत्त्व के दो स्वरूपों में लीला-विहार करते रहते हैं। समस्त दिव्य धामों में प्रमुख सच्चित-परमानन्दमय लीला-विहार करते रहते हैं। समस्त धामों में प्रमुख सच्चित्-परमानन्दमय गोलोक धाम है, वही समस्त ब्रह्माण्ड का आत्मा है। उसी से अनन्त ब्रह्माण्ड का आत्मा है। उसी से अनन्त ब्रह्माण्ड नित्य अनुप्राणित होते रहते हैं। वह नित्य सच्चिदानन्दमय परधाम सबसे विलक्षण और सर्वोपरि होने पर भी सर्वत्र व्याप्त और सबमें स्थित है। इतने पर भी उसकी पादविभूति के एक अंश में ही समस्त प्राकृत लोकों की परिसमाप्ति हो जाती है। इनसे सर्वथा अस्पृष्ट त्रिपादविभूति है, वह अप्राकृत सच्चिदानन्दमय परमधाम है। वही साकेत, वैकुण्ठ, कैलास आदि परधामों के रूप में भक्तों के अनुभवों में आता है। |
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