श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्णका भूलोक में प्राकट्य
आज अजन्मा के दिव्य जन्म का महामहोत्सव है। वे अजन्मा श्रीकृष्ण क्या हैं, कैसे हैं- इस रहस्य को वे ही जानते हैं। उन्होंने स्वयं ही कहा है- ‘मेरे प्राकट्य के रहस्य को न देवता जानते हैं न महर्षिगण ही।’ तथापि उन्होंने अपने श्रीमुख से गीता में अपना जो परिचय दिया है, उसका स्मरण करके हम अपने जीवन को और अन्तःकरण को परम पवित्र कर सकते हैं। उनका आत्मपरिचय बतलाता है कि वे कर्मों से सवर्था अलिप्त रहते हैं और कर्म फल के प्रति सर्वथा निःस्पृह हैं[1] सम्पूर्ण यज्ञ-तपों के भोक्ता, सर्वलोकमहेश्वर, समस्त प्राणियों के सुहद् हैं[2] वे सर्वत्र व्याप्त हैं और समस्त अनन्त चराचर जगत उनमें है[3] वे जल में रस, चन्द्र-सूर्य में प्रकाश, पृथ्वी में गन्ध, जीव मात्र के जीवन, समस्त भूतों के सनातन बीज, बुद्धिमानों की बुद्धि, तेजस्वियों के तेज, बलवानों के काम-राग-विवर्जित बल हैं[4] अष्टधा जड़ अपरा और चेतन परा-दोनों उनकी ही प्रकृति हैं[5] वे क्रतु, यज्ञ, स्वधा, औषध, मन्त्र, आज्य, अग्रि, हवन-समस्त श्रोत-स्मार्त्त कर्म और उनके साधन हैं[6] वे जगत के माता, पिता, पितामह, धाता, जानने योग्य, पवित्र ओंकार और वेदत्रयी हैं वे ही गति, भर्ता, प्रभु, साक्षी, निवास, शरण्य, सुहृद्, उत्पत्ति-प्रलय, सर्वाधार, सर्वनिधान और अव्यय बीज हैं[7] वे ही सत हैं, असत हैं मृत्यु हैं, अमृत हैं[8] वे सत भी नहीं हैं, असत भी नहीं हैं[9] वे सत -असत दोनो से परे हैं।[10] |
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