श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्णचरित्र की उज्ज्वलताआपके पत्र में ऐसे प्रश्न थे, जिनका उत्तर श्रीकृष्णचरित्र के स्मृतियोग में स्थित चित्त की सुस्थिर अवस्था में ही किसी अंश में लिखा जा सकता है। यही भी देर होने का एक कारण है। आशा है, आप मुझे क्षमा करेंगे। आपने अपने प्रश्नों में भगवान श्रीकृष्ण के व्रजचरित्र पर जो आक्षेप किये हैं और व्यंगयात्मक वाक्य लिखे हैं, वे तो ठीक नहीं हैं। यह ठीक है कि आप श्रीकृष्ण को ‘बहुत ही उज्ज्वल’ रूप में देखना चाहते हैं और यह भी सत्य है कि आपको श्रीकृष्ण-चरित्र का ‘अपवित्र’ (?) वर्णन मिलता है, उसे पढ़-सुनकर दुःख होता है। आपकी नीयत ठीक है, परंतु श्रीकृष्ण-चरित्र का मर्म समझे बिना ही उस पर दोषारोपण करना और उसे अपवित्र बतला देना उचित नहीं। आज आपके-ऐसे और भी बहुत-से लोग हैं, जो सच्चे हृदय से श्रीकृष्ण के चरित्र को अपनी कल्पना के अनुसार उज्ज्वलता के साँचे में ढला हुआ देखना चाहते हैं। परंतु वह उनकी कल्पना है। भगवान को अपनी मर्यादा के अंदर बाँध रखने की उनकी यह कल्पना सचमुच हास्यास्पद ही है। भगवान भगवान ही हैं-उनकी लीलाओं की परीक्षा हमारी मायाच्छन्न बुद्धि नहीं कर सकती। आप श्रीकृष्ण का भजन-चिन्तन कीजिये। भजन के प्रताप से उनकी कृपा के द्वारा शुद्ध मति के प्राप्त होने पर आप श्रीकृष्ण के व्रजचरित्र का महत्त्व कुछ समझ सकेंगे। उनका उज्ज्वल चरित्र देखना हो तो उनकी श्रीमद्भगवद्गीता को देखिये, जिसमें कहीं भी किंतु-परंतु के लिये गुंजाइश नहीं है। इसका यह अर्थ नहीं है कि उनका व्रजचरित्र उज्ज्वल नहीं है। वह तो परमोज्ज्वल है और परम पवित्र है, परंतु पहले उज्ज्वल की उपलब्धि होने पर ही परमोज्ज्जवल की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। गीता के चरम उपदेश भगवत्-शरणागति को प्राप्त होने पर ही आगे चलना सम्भव है। जो उनके गीतोक्त उज्ज्वल चरित्र को समझे बिना ही उनके परम उज्ज्वल व्रजचरित्र की आलोचना करने का दुस्साहस करते हैं, उनकी विवेक की आँखें चौंधिया जाती हैं और वे अपने को एक विलक्षण अँधेरे में पाते हैं, जो उनकी आँखों के न सहने योग्य आत्यन्तिक प्रकाश के कारण उत्पन्न होता है। इसी से वे वास्तविक रहस्य को न समझकर नाना प्रकार के कुतर्क करके श्रीभगवान पर दोषारोपण करते हैं या उनके उक्त चरित्र को मिथ्या कहकर बड़े भयानक पाप-पंक में अपने को फँसा लेते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं व्रजचरित्र के रहस्य को पूर्णतया जानता हूँ। मैं तो उनके उज्ज्वल गीता-रहस्य को भी नहीं जानता। आपने प्रश्नों के उत्तर में मेरी अपनी ‘सम्मति’ पूछी, इसी से कुछ लिख रहा हूँ। यही ठीक रहस्य है, यह मेरा दावा नहीं है। आपके लम्बे प्रश्नों का अलग-अलग उत्तर न लिखकर संक्षेप में एक ही साथ लिखता हूँ। कोई बात छूट जाय तो क्षमा कीजियेगा। |
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