श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेमी की तल्लीनताभक्त का मन सदा प्रभु-प्रेम में ऐसा तल्लीन हो जाता है कि आधे क्षण के लिये भी अन्य किसी पदार्थ में नहीं रमता। गोपियाँ उद्धवजी से कहते हैं-ऊधौ, मन न भए दस-बीस।
मधुकर स्याम हमारे चोर।
जब एक प्रियतम श्रीकृष्ण को छोड़ कर दूसरे का मन में प्रवेश ही निषिद्ध है, तब दूसरे किसी की प्राप्ति क लिये उत्साह तो हो की कैसे ? कोई किसी को देखे, सुने, उसके लिये मनमें इच्छा उत्पन्न हो, तब न उसके लिये प्रयत्न किया जाय? मन किसी में रमें, तब न उसे पाने के लिये उत्साह हो। मन तो पहले से ही किसी एक का हो गया; उसने मन पर अपना पूरा अधिकार जमा लिया और स्वयं उसमें आकर सदा के लिये बस गया- दूसरे किसी के लिये कोई गुंजाइश ही नही रह गयी; यदि कोई आता भी है तो उसे दूरसे ही लौट जाना पड़ता है! क्या करे जगह ही नहीं रही। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज