श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवान की नित्य-लीलाभगवान की नित्य-लीला में कभी विराम नहीं है। स्थूल जगत् की लीला तो हम सभी देखते हैं, परंतु दुर्भाग्य वश भ्रम से उसको उनकी लीला न समझकर कुछ और ही समझे हुए हैं। भगवान तो स्पष्ट इशारा करते हैं कि तुम जगत् का जो रूप देखते हो, वह असली नहीं है-ऐसा मिलेगा नहीं-‘न रूपमस्येह तथोपलभ्यते’। हो तो मिले। परंतु हम भगवान की इस उक्ति पर ध्यान ही नहीं देते और अपने मनः कल्पित स्वरूप को सत्य समझकर तुच्छ विषयों के पीछे मारे-मारे फिरते और नित्य नया दुःख मोल लेते हैं। इस स्थूल के पीछे एक सूक्ष्म जगत्-अन्तर्जगत् है। उसमें प्रधानतया दो स्तर हैं-एक में स्थूल विश्व ब्रह्माण्डों के संचालन सूत्रों को हाथ में लिये हुए भगवान की विभिन्न अनन्त शक्तियाँ अनवरत किया करती हैं, स्थूल जगत् के बहुत बड़े–बड़े परिवर्तन इस अन्तर्जगत की शक्तियों के जरा-से यन्त्र घुमाने से ही हो जाते हैं। यह स्तर स्थूल और अपेक्षाकृत बाह्य है। दूसरा सूक्ष्म और आभ्यन्तर स्तर है, जिसमें भगवान अपने परिकरों सहित नित्य-लीला करते हैं, जो संसार की समस्त लीलाओं का आधार है और जिसमें एक-से-एक आगे अनेक स्तर हैं। भगवान की परम कृपा से ही इस सारे रहस्यों का पता लगता है। सगुण साकार भगवत्स्वरूप के अनन्य भक्त ही अन्तर्जगत् के इस सूक्ष्मतर स्तर में प्रवेश कर सकते हैं और भगवत्कृपा से अधिकार-प्राप्त होकर वे आगे बढ़ते-बढ़ते एक स्तर के बाद दूसरे स्तर में प्रवेश करते हुए अन्त में उस सर्वोपरि परम सूक्ष्मतम स्तर में पहुँच जाते हैं, जहाँ भगवान की अत्यन्त गुह्यतम मधुर लीलाएँ होती रहती हैं। इसी सूक्ष्मतम स्तर को विशेष स्तर भेद से श्रीरामभक्त ‘साकेत, श्रीकृष्णभक्त ‘गोलोक, श्रीशिवभक्त ‘कैलास’, श्रीविष्णुभक्त ‘वैकुण्ठ’, परमधाम, महाकारण आदि कहते हैं। यही भगवान का लौकिक सूर्य-चन्द्र के प्रकाश से परे, वरं इन सबको प्रकाश देने वाले दिव्य प्रकाश से संयुक्त नित्य दिव्यधाम है; इसकी लालाएँ अनिर्वचनीय होती हैं। यहीं की लीलाओं का कुछ स्थूल अंश और वह भी बहुत ही थोड़े परिमाण में-अनन्त जल निधि के एक जल कण से भी अल्प परिमाण में श्री अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पंचवटी और वृन्दावन, मथुरा और द्वारका में उस समय प्रकट हुआ था, जिस समय स्वयं भगवान अपने प्रिय परिकरों सहित अयोध्या में श्रीराम रूप में और व्रज में श्रीकृष्ण रूप में प्रकट हुए थे। उनका यह नित्य विहार आज भी वहाँ होता है, भाग्यवान् जन देख पाते हैं! वस्तुतः भगवान के अवतरण के साथ ही उनके नित्य धाम का भी अवतरण होता है। उसी में भगवान की लीलाएँ होती हैं, इसी से लीला धामों की इतनी महिमा है! |
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