विषय सूची
श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
राधा-कृष्ण की अभिन्नता तथा राधा प्रेम की विशुद्धता
(1) दिन में
श्रीकृष्ण ही ब्रह्म हैं, परमात्मा हैं, भगवान् हैं। वे सच्चिदानन्द, स्वप्रकाश और अद्वय ज्ञानस्वरूप हैं। वे सर्वमय हैं, सर्वातीत हैं। वे सर्वज्ञ, सर्वग, अनन्त, विभु हैं। वे सर्वलोकमहेश्वर, सर्वशक्तिमान् हैं। वे अनन्त शक्तियों के परमाधार और एकाधार हैं। वे सगुण, निर्गुण, निराकार और साकार हैं। वे ब्रह्म की प्रतिष्ठा हैं, वे ही आश्रयतत्त्व हैं। श्रीकृष्ण स्वयं भगवान् हैं - ‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्।’ वे ही द्विभुज मुरलीमनोहर श्यामसुन्दर नराकृति, परब्रह्म, लीलामय, लीलापुरुषोत्तम, भुवनमोहन-श्रीविग्रह हैं। वे अचिन्त्यानन्त विरुद्ध-धर्माश्रय और अपार करुणामय हैं। वे साक्षात् मन्मथ-मन्मथ हैं। वे आनन्द-चिन्मय-रस-समुद्र, रसस्वरूप, आस्वाद्य और आस्वादक, रसिकशेखर हैं। वे अपने असमोर्ध्व नित्य परिवर्द्धनशील सौन्दर्य-माधुर्य के द्वारा विश्वविमोहन-सर्वचित्ताकर्षक हैं, सर्वचित्तहर हैं, यहाँ तक कि अपने स्वरूप-सौन्दर्य को देखकर स्वयं ही मुग्ध हो जाते हैं—
अपने ही इस नित्य सौन्दर्य-माधुर्य-रस का समास्वादन करने के लिये वे स्वयं अपनी ह्लादिनी शक्ति को अथवा आनन्दस्वरूप को सदा-सर्वदा श्रीराधारूप में अभिव्यक्त किये हुए हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 3। 2। 12
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज