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श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी-महोत्सव
सं. 2026 वि. के जन्माष्टमी-महोत्सव पर रचित
- सर्वातीत, सर्व-विरहित जो, सर्व, सर्वमय, सर्वाधार।
- सर्वव्यापक, सर्वात्मा जो स्वयं सृष्टि, स्रष्टा, संहार।।
- मायापति, नित माया-विरहित, ब्रह्म, ब्रह्ममय, ब्रह्माधार।
- निर्गुण, सगुण, निराकृति, नित्य निरन्जन, दिव्य सगुण साकार।।
- प्रकृति-विकृतिमय, व्यक्त, प्रकृतिगतपुरुष, विश्वमय, विश्वाकार।
- अपरिवर्तन रूप एकरस, नित वैचित्र्यपूर्ण संसार।।
- ब्रह्मा-विष्णु-महेश-रूप से करते जो लीला-विस्तार।
- सरस्वती-लक्ष्मी-काली के विविध अनन्त प्रकट आकार।।
- देश-काल-बन्धन-विरहित, जो देश-कालमय, कालातीत।
- कालरूप विकराल, सुनाते नित विनाश के भैरव गीत।।
- नित्य अनन्त-असीम-अलौकिक, परम स्वतन्त्र स्वयं-भगवान।
- करते अन्तमयी-सी लीला लौकिक, सीमित, कर्मप्रधान।।
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