श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
वे नित्य आत्माराम होकर भी उदासीन नहीं रह सकते। वे नित्य आप्तकाम होकर भी निष्काम नहीं रहते। वे अपने सहज उपकारों से सबको कृतज्ञ करने वाले होकर भी स्वंय कृतज्ञ होते हैं और वे एकमात्र जगतगुरु होने पर भी श्री व्रज सुन्दरियों को-श्री राधारानी को अपना प्रेम-गुरु मानते हैं और उनसे कभी द्रोह नहीं करते। यह है परम प्रेम-सुधासागर आनन्दकन्द व्रजेन्द्रनन्दन श्री कृष्णचन्द्रका अपने मुँह से दिया हुआ आत्म-परिचय! भगवान् ने स्वंय श्री उद्धवजी से कहा है-
‘उद्धव! मुझे तुम-जैसे प्रेमी भक्त जितने प्रिय हैं, उतने प्रिय मेरे पुत्र ब्रह्मा, मेरे आत्मस्वरूप शंकर, मेरे भाई बलराम जी और मेरी अद्धानी लक्ष्मीजी भी नहीं हैं। और तो क्या, मेरा अपना आत्मा भी मुझे उतना प्रिय नहीं है।’ |
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