श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेमी का स्वरूपजो सबसे बढ़कर प्रिय हो, जो प्राणों का आधार हो, जो जीवन का एकमात्र अवलम्बन हो, जिसकी स्मृति और मिलन की आशा ही जीवन में प्रतिपल चेतना प्रदान करती हो, उसे क्षण भरके लिये भी कैसे भुलाया जा सकता है? कोई कह सकता है कि ‘दिन-रात में दो घंटे भले ही उसे स्मरण कर लिया करो, शेष बाईस घंटे घर के दूसरे आवश्यक कामों में खर्च किया करो’; पर ऐसा करना उस प्रेमी के लिये कैसे सम्भव हो सकता है? उसे कितने ही घंटे कुछ भी काम क्यों न करना पड़े, वह करेगा अपने प्रियतमका स्मरण करते हुए ही। उसे वह क्षणभर के लिये भी अपने हृदय मन्दिर से अलग नहीं कर सकता। हृदय में उसकी झाँकी सदा खुली रहेगी, वह उसके दर्शन करता हुआ ही यन्त्र की भाँति शरीर से कार्य करता रहेगा। ऐसे अनन्यचेता सतत और नित्य चिन्तन में लगे रहने वाले प्रेमी को भगवान नित्य प्राप्त ही रहते हैं, वे उसकी अन्तर्दृष्टि से कभी ओझल हो ही नहीं सकते। इसी स्थिति को प्राप्त भक्त सूरदास ने कहा था-
भगवान को याद रखने का उपदेश, घंटे-दो-घंटे याद अधिक नियमित काल के लिये नाम-जप की आज्ञा, अथवा इतनी संख्या पूरी करने पर सिद्धि हो जायेगी-इस लोक से संख्यायुक्त जप या संख्या की गणना से जप हो जाता है, अन्यथा भूल रह जाना सम्भव है, इसलिये संख्या की अवधि बाँधकर जप करना चाहिये-यह आदेश तो उन आरम्भिक साधकों के लिये है, जो भगवान के प्रेमी नहीं हैं। न करने की अपेक्षा ऐसा करना बहुत उत्तम है। प्रेम प्राप्त होने पर यह कहना नहीं पड़ता कि अमुक समय तक अमुक संख्या से उन्हें याद किया करो। संख्या या सयम का हिसाब कौन रखे? जब क्षण भर के लिये भी प्रियतक की स्मृति चित्त से नहीं हटती, तब हिसाब-किताब की बात ही कहाँ रह जाती है? श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम को सीता का संदेश सुनाते हुए श्री हनुमानजी कहते हैं कि ‘‘प्रभो! सीता प्राण-त्याग करना चाहती हैं, परन्तु प्राण निकल नहीं पाते।’’ सीताजी ने कहा है-
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