श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवदवतार का रहस्यअपने निजजन व्रजवासियों को सुखी करने के लिये ही तो भगवान गोकुल में पधारे थे। माखन तो नन्दबाबा के घर पर कम न था, लाख-लाख गोएँ थीं। वे चाहे जितना खाते-लुटाते। परंतु वे तो केवल नन्दबाबा के ही नहीं, सभी व्रजवासियों के अपने थे, सभी को सुख देना चाहते थे। गोपियों की लालसा पूरी करने के लिये ही वे उनके घर जाते और चुरा-चुराकर माखन खाते। यह वास्तव में चोरी नहीं, यह तो गोपियों की पूजा-पद्धति का भगवान के द्वारा स्वीकार था। भक्तवत्सल भगवान भक्त की पूजा का स्वीकार कैसे न करें? भगवान की इस दिव्यलीला-माखनचोरी का रहस्य न जानने के कारण ही कुछ लोग इसे आदर्श के विपरीत बतलाते हैं। उन्हें पहले समझना चाहिये चोरी क्या वस्तु है, वह किसकी होती है और कौन करता है। चोरी उसे कहते हैं जब किसी दूसरे की कोई वस्तु उसकी इच्छा के बिना, उसके अनजान में और आगे भी वह जान पाये-ऐसी इच्छा रखकर ले ली जाती है। भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के घर से माखन लेते थे उनकी इच्छा से, गोपियों के अनजान में नहीं-उनकी जान में, उनके देखते-देखते और आगे जनाने की कोई बात ही नहीं- उनके सामने ही दौड़ते हुए निकल जाते थे। दूसरी बात महत्त्व की यह है कि संसार में या संसार के बाहर ऐसी कौन-सी वस्तु है, जो श्रीभगवान की नहीं है और वे उसकी चोरी करते हैं? गोपियों का तो सर्वस्व श्रीभगवान का था ही, सारा जगत ही उनका है। वे भला, किसकी चोरी कर सकते हैं? हाँ, चोर तो वास्तव में वे लोग हैं, जो भगवान की वस्तु को अपनी मानकर ममता-आसक्ति में फँसे रहते हैं और दण्ड के पात्र बनते हैं। उपर्युक्त सभी दृष्टियों से यही सिद्ध होता है कि माखनचोरी चोरी न थी, भगवान की दिव्य लीला थी। असल में गोपियों ने प्रेम की अधिकता से ही भगवान का प्रेम का नाम ‘चोर’ रख दिया था; क्योंकि वे उनके चित्तचोर तो थे ही। यही रहस्य है। जो लोग भगवान श्रीकृष्ण को भगवान नहीं मानते, यद्यपि उन्हें श्रीमद्भागवत में वर्णित भगवान की लीला पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं है, उनकी दृष्टि से भी इस प्रसंग में कोई आपत्तिजनक बात नहीं है; क्योंकि श्रीकृष्ण उस समय लगभग दो-तीन वर्ष के बच्चे थे और गोपियाँ अत्यधिक स्नेह के कारण उनके ऐसे-ऐसे मधुर खेल देखना चाहती थीं। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज