श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
पूर्ण परात्पर भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भावउन्होंने, भला, घोड़े हाँकना कब किससे सीख था? पर इस कला में वे सबके गुरुस्थानीय हैं। शल्य-सरीखे अश्व-संचालन-कुशल भी उनके सामने अपने को नगण्य मानते हैं। पर उनका यह सारथ्यकर्म है-केवल मित्रधर्म का आदर्श रखने के लिये और धर्मयुद्ध में अर्जुन को विजय दिलाने के लिये। उनकी वाग्मिता प्रसिद्ध है। कौरवों की सभा में उनका भाषण सुनने के लिये दूर-दूर से बड़े-बड़े बूढ़े ज्ञानी, श्रोत्रिय, पण्डित, विद्वान् ऋषि पधारे थे। उनका दिव्य तेज तथा ऐश्वर्य इतना विलक्षण है कि उसके सामने सभी सहज नतमस्तक हो जाते हैं। उनके समकालीन महान्-से-महान् ज्ञानी-विज्ञानी, ज्ञानवृद्ध-वयोवृद्ध, धर्मशील-तपस्यारत, ऋषि-महर्षि, वीर-पराक्रमी, शान्तिप्रिय और विकट योद्धा-सभी उनके श्रद्धा करते और उनके लोकातीत ऐश्वर्य को देखकर चकित होते थे। साक्षात् वेदव्यास, देवर्षि नारद, पितामह भीष्म, नाना उग्रसेन, विदुर, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, धृतराष्ट्र, कर्ण, गान्धारी, कुन्ती आदि विभिन्न भावों तथा विचित्र स्वभावों से युक्त पुरुष और नारियाँ ईश्वरबुद्धि से देख-देखकर अपने को कृतार्थ मानते थे। उनकी ‘भगवद्गीता’ जगत् के अध्यात्म-साहित्य का ही नहीं, नैतिक जगदाकाश का भी नित्य-निरन्तर वर्द्धनशील परमशान्तिदायक तथा प्रकाशदायक परमोज्जवल दिव्य सूर्य है, जो समस्त जगत् को अपनी ओर आकृष्ट किये है और जिसको सभी अपने-अपने क्षेत्र में सर्वथा सफल पथप्रदर्शक मानकर अपनाये हुए हैं-एकान्त अरण्यवासी विरक्त महात्मा भी, लोकमान्य तिलक-सरीखे कर्मयोगी भी, गाँधीजी-सरीखे राजनीतिक नेता भी, कुशल व्यापारी भी और महान् क्रान्तिकारी भी। ध्वंस के ज्वालामुखी के मुखपर बैठा हुआ आज का आत्मविस्मृत, तमोऽभिभूत भौतिक विज्ञान-मदमत्त मानव यदि भगवान श्रीकृष्ण सर्वकल्याणमीय श्रीमद्भगवद्गीता का आश्रय लेकर उसके प्रकाश प्राप्त करे तो उसे सच्चे विज्ञान की दिव्य ज्योति प्राप्त हो सकती है, विकास तथा कल्याण का सच्चा मार्ग मिल सकता है और जगत् प्रलयाग्नि के भीषण भय से मुक्त हो सकता है। निष्कामता का परम आदर्श उनके लीलाचरित्र में प्रत्यक्ष है। वे सर्वथा निष्काम, आप्तकाम होकर भी लोकसंग्रहार्थ यथायोग्य कर्म करते हैं। अत्याचारी राजाओं का वध करते हैं, पर स्वयं किसी के भी राज्य पर कभी अधिकार नहीं करते। |
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