श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इसी बीच में वहाँ एक दिव्य मणि-रत्नों, पारिजात-कुसुम-मालाओं, श्वेत चामरों तथा विशुद्ध काषाय वस्त्रों से विभूषित शत-शत सूर्य-प्रभाओं के सदृश तेजः पुंज रथ आया। उस रथ में कमनीय श्यामसुन्दर शंख-चक्र-गदा-पद्य धारण किये पीताम्बरधारी भगवान् नारायण विराजित थे। उनके साथ महादेवी सरस्वती और महालक्ष्मी भी थीं। वे भगवान् नारायण रथ से उतरे और तुरंत श्रीकृष्ण के शरीर में लीन हो गये तथा इस परमाश्चर्य को देखकर सब लोग चकित हो गये-
इसके पश्चात् एक दूसरे परम सुन्दर देदीप्यमान रथ में चुतुर्भुज, वनमाला-विभूषित, अपार-प्रभाशाली जगत्पति भगवान् विष्णु पधारे और वे भी रथ से उतरकर भगवान् श्रीराधिकेश्वर के शरीर में लीन हो गये- इससे भी यही सिद्ध होता है कि भगवान् श्रीकृष्ण साक्षात् स्वयं-भगवान् है और उनके इस स्वरूप में सबका तथा सबके लीला-कार्यों का एकत्र समावेश है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में आता है कि इसके पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण ने देवी कमला लक्ष्मी से मुसकराते हुए कहा-‘देवि! तुम कुण्डिन-नगर में राजा भीष्मक के घर देवी वैदर्भी के उदर से अवतरित हो ओ, मैं वहाँ जाकर तुम्हारा पाणिग्रहण करूँगा।’ तदनन्तर वहाँ पधारी हुई देवी पार्वती से भगवान् ने कहा-‘तुम सृष्टि-संहारकारिणी महामाया हो, तुम अंशरूप से व्रजधाम में जाकर यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण होओ। मानवगण नगर-नगर में भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करेंगे। तुम्हारे प्रकट होते ही वसुदेव यशोदा के सूतिका गृह में मुझे रखकर तुम्हें ले जायँगे। फिर कंस को देखते ही पुनः तुम भगवान शिव के पास चली जाना। मैं पृथ्वी का भार उतारकर अपने धाम में लौट आऊँगा।’ इसके बाद कौन देवता किस नाम-रूप से कहाँ अवतार लेंगे- विशिष्ट-विशिष्ट देवतओं के लिये भगवान् ने इसका निर्देश किया है। |
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