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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 94
तदनन्तर शशिकला ने कहा- माधवि! ब्रह्मा आदि देवता तथा चारों वेद जिनके ध्यान में मग्न रहते हैं, जिनके देवताओं द्वारा अभीप्सित चरणकमल का संतलोग सदा ध्यान करते हैं; पद्मा, सरस्वती, दुर्गा, अनन्त, सिद्धेन्द्र, मुनीन्द्र, मनुगण और महेश्वर भी जिन्हें नहीं जान पाते; उन परमात्मा श्रीकृष्ण को तुम क्या जानती हो? जो सर्वात्मा हैं, उनका कैसा रूप? और जो निर्गुण हैं, उनके कैसे गुण? सत्यस्वरूप भगवान के जिस सत्य स्वरूप का वर्णन किया गया है, जो सुखदायक, आह्लादजनक, रमणीय, भक्तानुग्रह-मूर्ति, लीलाधाम और मंगलों का आश्रय स्थान है, जिसकी लावण्यता करोड़ों कामदेवों से बढ़कर है, जिस जनमनोहर रूप से बढ़कर अनिर्वचनीय कोई भी रूप नहीं है; उसी मनोहर रूप को श्रीकृष्ण पृथ्वी का भार उतारने के समय धारण करते हैं। मन्दाकिनी का मीठा जल जिनके मधुर पादपद्मों का धोवन है, जिसे परात्पर सर्वेश्वर शंकर भक्तिपूर्वक अपने सिर पर धारण करते हैं, विरक्त होकर सदा उन तीर्थकीर्ति श्रीकृष्ण का कीर्तन करते रहते हैं तथा आहार, भूषण और वस्त्र का परित्याग करके दिगम्बर हो भक्ति के आवेश में क्षणभर में नाचने लगते हैं और क्षणभर में गाने लगते हैं। ब्रह्मा, शेष सनत्कुमार और योगवेत्ता सिद्धों के समुदाय उनके परम निर्मल शुभ्र ब्रह्मज्योतिः स्वरूप का ध्यान करके तपस्या एवं सेवा द्वारा जीवन-यापन करते हैं; उन श्रीकृष्ण की महिमा कौन जान सकता है? फिर सुशीला ने श्रीकृष्ण की प्रशंसा करते हु कहा- सखि! ब्रह्मा, जो वेदों के उत्पादक एवं ईश्वर हैं; जिन श्रीकृष्ण की स्तोत्र द्वारा स्तुति करते हैं, यह माधवी उन्हीं सत्य नित्य परमेश्वर की निन्दा कर रही है; अतः यह सभा अपावन हो गयी और गोपियों का जीवन तो व्यर्थ ही हो गया। इन गोपियों में केवल राधा ही पुण्यवती हैं; क्योंकि ये रात-दिन उन श्रीकृष्ण का ध्यान करती रहती हैं; जिनके नामस्मरण मात्र से करोड़ों जन्मों में एकत्र किए हुए पाप का भय और शोक पूर्णतया नष्ट हो जाता है। इसमें तनिक भी संशय नहीं है। तदनन्तर रत्नमाला और पारिजाता श्रीकृष्ण की महिमा बखानती हुई बोलीं- प्रिये! ब्रह्मा ने जिस विश्वब्रह्माण्ड की रचना की है, वह महाविष्णु के रोमकूप में अणु के सदृश स्थित है; क्योंकि उन विष्णु के शरीर में जितने रोएँ हैं, उतने ही विश्व में उनमें वर्तमान हैं और वे महाविष्णु इन परमात्मा श्रीकृष्ण के सोलहवें अंश हैं। तब भला, श्रीकृष्ण के यश, शौर्य और अनुपम महिमा का क्या बखान किया जा सकता है? अथवा यह गोपकन्या माधवी उसे क्या जान सकती है? इस पर माधवी ने अपने कथन का तात्पर्य समझाया। उनके उस वचन को सुनकर उद्धव के सारे शरीर में रोमाञ्च हो आया। वे भक्तिविह्वल हो रुदन करते हुए मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। तत्पश्चात परमेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान करके वे अपने को तुच्छ मानने लगे और भक्तिपूर्वक उस गोपी से बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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