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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 45-46
इसके बाद शंकर जी ने भोजन किया। फिर उन्होंने मनोहर राजसिंहासन पर विराजमान हो उस दिव्य निवास गृह की अनुपम शोभा एवं चित्रकारी देखी। यह सब देखकर उन्हें आश्चर्य और परम संतोष हुआ। रात को उन्होंने उसी दिव्य भवन में विश्राम किया। प्राणवल्लभे! जब प्रातःकाल हुआ, तब नाना प्रकार के वाद्यों की मधुर ध्वनि होने लगी। फिर तो सब देवता वेगपूर्वक उठे और वेशभूषा से सज्जित हो अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर कैलास की यात्रा के लिये उद्यत हो गये। उस समय नारायण की आज्ञा से धर्म उस वासभवन में गये और योगीश्वर शंकर से समयोचित वचन बोले। धर्म ने कहा– प्रमथेश्वर! आपका कल्याण हो। उठिये, उठिये और श्रीहरि का स्मरण करते हुए माहेन्द्र-योग में पार्वती के साथ यात्रा कीजिये। वृन्दावन-विनोदिनि! धर्म की बात सुनकर शंकर ने पार्वती के साथ माहेन्द्र-योग में यात्रा आरम्भ की। पार्वती के साथ देवेश्वर शंकर के यात्रा करते समय मेना उच्च स्वर से रो पड़ीं और उन कृपानिधान से बोलीं। मेना ने कहा– कृपानिधे! कृपा करके मेरी बच्ची का पालन कीजियेगा। आप आशुतोष हैं। इसके सहस्रों दोषों को क्षमा कीजियेगा। मेरी बेटी जन्म-जन्म में आपके चरणकमलों में अनन्य भक्ति रखती आयी है। सोते-जागते हर समय इसे अपने स्वामी महादेव के सिवा दूसरे किसी की याद नहीं आती है। आपके प्रति भक्ति की बातें सुनते ही इसका अंग-अंग पुलकित हो उठता है और नेत्रों से आनन्द के आँसू बहने लगते हैं। मृत्युंजय! आपकी निन्दा कान में पड़ने पर यह ऐसी मौन हो जाती है, मानो मर गयी हो। मेना यह कह ही रही ती कि हिमवान तत्काल वहाँ आ पहुँचे और अपनी बच्ची को छाती से लगा फूट-फूटकर रोने लगे– ‘वत्से! हिमालय को– मेरे इस घर को सूना करके तू कहाँ चली जा रही है? तेरे गुणों को याद करके मेरा हृदय अवश्य ही विदीर्ण हो जायेगा।’ यों कहकर शैलराज ने अपनी शिवा शिव को सौंप दी और पुत्र तथा बन्धु-बान्धवों सहित वे बारंबार उच्चस्वर से रोदन करने लगे। उस समय कृपानिधान साक्षात भगवान नारायण ने उन सबको कृपापूर्वक अध्यात्मज्ञान देकर धीरज बँधाया। पार्वती ने भक्तिभाव से माता-पिता और गुरु को प्रणाम किया। वे महामायारूपिणी हैं; अतः माया का आश्रय ले बारंबार जोर-जोर से रोने लगीं। पार्वती के रोने से ही वहाँ सब स्त्रियाँ रोने लगीं। पत्नियों और सेवकगणों सहित सम्पूर्ण देवता और मुनि भी रो पड़े। फिर वे मानसशायी देवता शीघ्र ही कैलास पर्वत को चल दिये तथा दो ही घड़ी में शिव के निवास स्थान पर सानन्द जा पहुँचे। यह देखकर वहाँ के मंगल-कृत्य का सम्पादन करने के लिये देवताओं और मुनियों की पत्नियाँ भी दीप लिये शीघ्रतापूर्वक सहर्ष वहाँ आ गयीं। वायु, कुबेर, और शुक्र की स्त्रियाँ, बृहस्पति की पत्नी तारा, दुर्वासा की स्त्री, अत्रि-भार्या अनसूया, चन्द्रमा की पत्नियाँ, देवकन्या, नागकन्या तथा सहस्रों मुनिकन्याएँ वहाँ उपस्थित हुईं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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