गन्धर्वनन्दिनि! आग तापकर शरीर से पसीना निकालना, भूजी भाँग का सेवन करना, पकाये हुए तेल-विशेष को काम में लाना, घूमना, सूखे पदार्थ खाना, सूखी पकी हर्र का सेवन करना, कच्चा पिण्डारक[1], कच्चा केला, बेसवार[2] [3], सिन्धुवार[4], अनाहार [5], अपानक [6], घृतमिश्रित रोचना-चूर्ण, घी मिलाया हुआ सूखा शक्कर, काली मिर्च, पिप्पल, सूखा अदरक, जीवक[7] तथा मधु– ये द्रव्य तत्काल कफ को दूर करने वाले तथा बल और पुष्टि देने वाले हैं।
अब वात के प्रकोप का कारण सुनो। भोजन के बाद तुरंत पैदल यात्रा करना, दौड़ना, आग तापना, सदा घूमना और मैथुन करना, वृद्धा स्त्री के साथ सहवास करना, मन में निरन्तर संताप रहना, अत्यन्त रूखा खाना, उपवास करना, किसी के साथ जूझना, कलह करना, कटु वचन बोलना, भय और शोक से अभिभूत होना– ये सब केवल वायु की उत्पत्ति के कारण हैं। आज्ञा नामक चक्र में वायु की उत्पत्ति होती है। अब उसकी औषधि सुनो। केले का पका हुआ फल, बिजौरा नीबू के फल के साथ चीनी का शर्बत, नारियल का जल, तुरंत का तैयार किया हुआ तक्र, उत्तम पिट्ठी[8], भैंस का केवल मीठा दही या उसमें शक्कर मिला हो, तुरंत का बासी अन्न, सौवीर[9], ठंडा पानी, पकाया हुआ तेलविशेष अथवा केवल तिल का तेल, नारियल, ताड़, खजूर, आँवले का बना हुआ उष्ण द्रव पदार्थ, ठंडे और गरम जल का स्नान, सुस्निग्ध चन्दन का द्रव, चिकने कमलपत्र की शैय्या और स्निग्ध व्यंजन– वत्से! ये सब वस्तुएँ तत्काल ही वायु दोष का नाश करने वाली हैं। मनुष्यों में तीन प्रकार के वायु-दोष होते हैं। शारीरिक क्लेशजनित, मानसिक संतापजनित और कामजनित।
मालावति! इस प्रकार मैंने तुम्हारे समक्ष रोगसमूह का वर्णन किया तथा उन रोगों के नाश के लिये श्रेष्ठ विद्वानों ने जो नाना प्रकार के तन्त्र बनाये हैं, उनकी भी चर्चा की। वे सभी तन्त्र रोगों का नाश करने वाले हैं। उनमें रोग निवारण के लिये रसायन आदि परम दुर्लभ उपाय बताये गये हैं। साध्वि! विद्वानों द्वारा रचे गये उन सब तन्त्रों का यथावत वर्णन कोई एक वर्ष में भी नहीं कर सकता। शोभने! बताओ, तुम्हारे प्राणवल्लभ की मृत्यु किस रोग से हुई है। मैं उसका उपाय करूँगा, जिससे ये जीवित हो जायेंगे।
सौति कहते हैं– ब्राह्मण की यह बात सुनकर गन्धर्व कुमारी चित्ररथ-पुत्री मालावती ने प्रसन्न होकर इस प्रकार कहना आरम्भ किया।
मालावती बोली– विप्रवर! सुनिये। सभा में लज्जित हुए मेरे प्रियतम ने ब्रह्मा जी के शाप के कारण योगबल से प्राणों का परित्याग किया है। मैंने आपके मुँह से निकले हुए अपूर्व, शुभ एवं मनोहर आख्यान को पूर्णरूप से सुना है। इस संसार में विपत्ति के बिना कब, किसको, कहाँ आप-जैसे महात्माओं का संग प्राप्त हुआ है? विद्वन! अब मुझे मेरे प्राणनाथ को जीवित करके दे दीजिये। मैं आप सब लोगों के चरणों में नमस्कार करके स्वामी के साथ अपने घर को जाऊँगी।
मालावती का यह वचन सुनकर ब्राह्मण रूपधारी भगवान विष्णु उसके पास से उठकर शीघ्र ही देवताओं की सभा में गये।