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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 4
उस अद्भुत धाम का दर्शन करके वे देवता बड़ी प्रसन्नता के साथ जब कुछ दूर और आगे गये, तब वहाँ उन्हें रमणीय अक्षयवट दिखायी दिया। मुने! उस वृक्ष का विस्तार पाँच योजन और ऊँचाई दस योजन है। उसमें सहस्रों तनें और असंख्य शाखाएँ शोभा पाती हैं। वह वृक्ष लाल-लाल पके फलों से व्याप्त है। रत्नमयी वेदिकाएँ उसकी शोभा बढ़ाती हैं। उस वृक्ष के नीचे बहुत-से-गोप-शिशु दृष्टिगोचर हुए, जिनकी रूप श्रीकृष्ण के ही समान था। वे सब-के-सब पीतवस्त्रधारी और मनोहर थे तथा खेल-कूद में लगे हुए थे। उनके सारे अंग चन्दन से चर्चित थे और वे सभी रत्नमय आभूषणों से विभूषित थे। देवेश्वरों ने वहाँ उन सबके दर्शन किये। वे सभी श्रीहरि के श्रेष्ठ पार्षद थे। मुने! वहाँ से थोड़ी ही दूर पर उन्हें एक मनोहर राजमार्ग दिखायी दिया, जिसके दोनों पार्श्व में लाल मणियों से अद्भुत रचना की गयी थी। इन्द्रनील, पद्मराग, हीरे और सुवर्ण की बनी हुई वेदियाँ उस राजमार्ग के उभय पार्श्व को सुशोभित कर रही थीं। दोनों ओर रत्नमय विश्राम-मण्डप शोभा पाते थे। उस मार्ग पर चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और कुंकुम के द्रव से मिश्रित जल का छिड़काव किया गया था। पल्लव, लाजा, फल, पुष्प, दूर्वा तथा सूक्ष्म सूत्र में गुँथे हुए चन्दन-पल्लवों की बन्दनवार से युक्त सहस्रों कदली-स्तम्भों के समूह उस राजमार्ग के तटप्रान्त की शोभा बढ़ाते थे। उन सब पर कुंकुम-केसर छिड़के गये थे। जगह-जगह उत्तम रत्नों के बने हुए मंगलघट स्थापित थे, उनमें फल और शाखाओं सहित पल्लव शोभा पाते थे। सिन्दूर, कुंकुम, गन्ध और चन्दन से उनकी अर्चनी की गयी थी। पुष्पमालाओं से विभूषित हुए वे मंगल कलश उभयपार्श्व में उस राजमार्ग की शोभावृद्धि करते थे। क्रीडा में तत्पर हुई झुंड-की-झुंड गोपिकाएँ उस मार्ग को घेरे खड़ी थीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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