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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 4
कहीं बहुमूल्य उत्तम रत्नों की अनेक खानें उसकी शोभा बढ़ाती हैं। कहीं श्रेष्ठ निधियों के आकर उपलब्ध होते हैं, जिनसे वहाँ की छटा आश्चर्य में डाल देती है। वह दृश्य विधाता के भी दृष्टिपथ में आने वाला नहीं है। मुने! विरजा के किनारे कहीं तो पद्मराग और इन्द्रनील मणियों की खानें हैं, कहीं मरकतमणि की खानें श्रेणीबद्ध दिखायी देती हैं, कहीं स्यमन्तकमणि की तथा कहीं स्वर्ण मुद्राओं की खानें शोभा पाती हैं। कहीं बहुमूल्य पीले रंग की मणिश्रेणियों के आकर विरजातट को अलंकृत करते हैं। कहीं रत्नों के, कहीं कौस्तुभमणि के और कहीं अनिर्वचनीय मणियों के उत्तम आकर हैं। विरजा के उस तट-प्रान्त में कहीं-कहीं उत्तम रमणीय विहारस्थल उपलब्ध होते हैं। उस परम आश्चर्य जनक तट को देखकर वे देवेश्वर नदी के उस पार गये। वहाँ जाने पर उन्हें पर्वतों में श्रेष्ठ शतश्रृंग दिखायी दिया, जो अपनी शोभा से मन को मोहे लेता था। दिव्य पारिजात-वृक्षों की वनमालाएँ उसकी शोभा बढ़ा रही थीं। वह पर्वत कल्पवृक्षों तथा कामधेनुओं द्वारा सब ओर से घिरा था। उसकी ऊँचाई एक करोड़ योजन थी और लंबाई दस करोड़ योजन। उसके ऊपर की चौरस भूमि पचास करोड़ योजन विस्तृत थी। वह पर्वत चहारदीवारी की भाँति गोलोक के चारों ओर फैला हुआ था। उसी के शिखर पर उत्तम गोलाकार रासमण्डल है, जिसका विस्तार दस योजन है। वह रासमण्डल सुगन्धित पुष्पों से भरे हुए सहस्रों उद्यानों से सुशोभित है और उन उद्यानों में भ्रमर-समूह छाये रहते हैं। सुन्दर रत्नों और द्रव्यों से सम्पन्न अगणित क्रीडाभवन तथा कोटि सहस्र रत्नमण्डप उसकी शोभा बढ़ाते हैं। रत्नमयी सीढ़ियों, श्रेष्ठ रत्ननिर्मित कलशों तथा इन्द्रनीलमणि शोभाशाली खम्भों से उस मण्डल की शोभा और बढ़ गयी है। उन खम्भों में सिन्दूर के समान रंगवाली मणियाँ सब ओर जड़ी गयी हैं तथा बीच-बीच में लगे हुए मनोहर इन्द्रनील नामक रत्नों से वे मण्डित हैं। रत्नमय परकोटों में जटित भाँति-भाँति के मणिरत्न उस रासमण्डल की श्रीवृद्धि करते हैं। उसमें चारों दिशाओं की ओर चार दरवाजे हैं, जिनमें सुन्दर किंवाड़ लगे हुए हैं। उन दरवाजों पर रस्सियों से गुँथे हुए आम्रपल्लव बन्दनवार के रूप में शोभा दे रहे हैं। वहाँ दोनों ओर झुंड-के-झुंड केले के खम्भे आरोपित हुए हैं। श्वेतधान्य, पल्लवसमूह, फल तथा दूर्वादल आदि मंगलद्रव्य उस मण्डल की शोभा बढ़ाते हैं। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और कुंकुमयुक्त जल का वहाँ सब ओर छिड़काव हुआ है। मुने! रत्नमय अलंकारों तथा रत्नों की मालाओं से अलंकृत करोड़ों गोपकिशोरियों के समूह से रासमण्डल घिरा हुआ है। वे गोपकुमारियाँ रत्नों के बने हुए कंगन, बाजूबंद और नूपुरों से विभूषित हैं। रत्ननिर्मित युगल कुण्डल उनके गण्डस्थल की शोभा बढ़ाते हैं। उनके हाथों की अंगुलियाँ रत्नों की बनी हुई अँगूठियों से विभूषित हो बड़ी सुन्दर दिखायी देती हैं। रत्नमय पाशकसमूहों (बिछुओं)– से उनके पैरों की अंगुलियाँ उद्भासित होती हैं। वे गोपकिशोरियाँ रत्नमय आभूषणों से विभूषित हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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