ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 29-31
जो देव प्रतिमा, गुरु और ब्राह्मण को देखकर वेगपूर्वक उन्हें प्रणाम नहीं करता, उसे गोहत्या अवश्य लगती है। जो ब्राह्मण प्रणाम करने वाले व्यक्ति को क्रोध में आकर आशीर्वाद नहीं देता तथा विद्यार्थी को विद्या नहीं पढ़ाता, उसे गोहत्या लगती है। गुरुपत्नी, राजपत्नी, सौतेली माँ, सगी माँ, पुत्री, पुत्र-वधु, सास, गर्भवती स्त्री, बहिन, सहोदर भाई की पत्नी, मामी, दादी, नानी, बुआ, मौसी, भतीजी, शिष्या, शिष्य-पत्नी, भानजे की स्त्री, भाई के पुत्र की पत्नी- इन सबको ब्रह्मा जी ने अत्यन्त अगम्या बतलाया है। जो पुरुष कामभाव से इन पर दृष्टिपात करता है, उसे अधम मानव कहा गया है। वेदों में उसे मातृगामी कहा गया है। उसे ब्रह्महत्या का पाप-फल प्राप्त होता है। किसी भी सत्कर्म में उसे नहीं लिया जा सकता। वह महापापी अत्यन्त दुष्कर कुम्भीपाक नामक नरक में जाता है। भद्रे! मैंने नरकों में जाने वाले लोगों के कुछ लक्षण बतला दिए। इन नरककुण्डों से अतिरिक्त नरक में जो जाते हैं, उनका प्रसंग कहता हूँ, सुनो ! साध्वि! जो द्विज पुंश्चली और वेश्या का अन्न खाता तथा उसके साथ गमन करता है, वह मरने के पश्चात् कालसूत्र नामक नरक में जाता है। इसके बाद रोगी होता है। एक पति की सेवा करने वाली स्त्री ‘पतिव्रता’ कहलाती है। दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करने पर उसे ‘कुलटा’ कहते हैं। तीसरे के सम्पर्क में आने पर उसे ‘धर्षिणी’ जानना चाहिए। चौथे के पास जाने वाली ‘पुंश्चली’ मानी जाती है। पाँचवें-छठें के साथ गमन करने वाली स्त्री की ‘वेश्या’ संज्ञा होती है। सातवें-आठवें के सम्पर्क में आने वाली ‘युग्मी’ कहलाती है। इससे अधिक पुरुषों के पास जाने वाली स्त्री को ‘महावेश्या’ कहते हैं। वह सबके लिए अस्पृश्य है। जो द्विज कुलटा, धर्षिणी, पुंश्चली, वेश्या, युग्मी, अथवा महावेश्या के साथ गमन करता है, वह अवटोद नामक नरक में जाता है- यह निश्चित है। कुलटागामी सौ वर्षों तक, धर्षिणीगामी चार सौ वर्षों तक, पुंश्चलीगामी छः सौ वर्षों तक, वेश्यागामी आठ सौ वर्षों तक, युग्मीगामी एक हजार वर्षों तक तथा महावेश्यागामी कामुक मानव इससे सौ गुने वर्ष तक इस अवटोद नरक में वास करता है। यमदूत उस पर प्रहार करते हैं। फिर कुलटागामी तित्तिर, धर्षिणीगामी कौआ, पुंश्चलीगामी कोयल, वेश्यागामी श्रृगाल, युग्मीगामी सूअर तथा महावेश्यागामी मरघट में सेमल का वृक्ष होकर सात जन्मों तक पाप का फल भोगते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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