ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड: अध्याय 10
इनके तारुण्य में कभी शिथिलता नहीं आती। ये शान्तस्वरूपिणी देवी भगवान नारायण की प्रिया हैं। सत्सौभाग्य कभी इनसे दूर नहीं हो सकता। इनके सिर पर सघन अलकावली है। मालती के पुष्पों की माला इनकी शोभा बढ़ा रही है। इनके ललाट पर चन्दन-बिन्दुओं के साथ सिन्दूर की बिन्दी है, जिससे उनका लालित्य बढ़ गया है। गण्डस्थल पर कस्तूरी से पत्र रचना की गयी है, जो नाना प्रकार के चित्रों से सुशोभित है। इनके परम मनोहर दोनों होंठ पके हुए बिम्बफल की लालिमा को तुच्छ कर रहे हैं। इनकी मनोहर दन्तपंक्तियों के सामने मोतियों की लड़ी नगण्य समझी जाती है। इनके कटाक्षपूर्ण बाँकी चितवन से युक्त नेत्र परम मनोहर हैं। इनका वक्षःस्थल विशाल है। स्थल-कमल की प्रभा का पराभव करने वाले दो सुन्दर चरण हैं। रत्नमय पादुकाओं से शोभा पाने वाले उन चरणों में महावर लगा है। देवराज इन्द्र के मुकुट में लगे हुए मन्दार के फूलों के रजःकण से इन देवी के श्रीचरणों की लालिमा गाढ़ी हो गयी है। देवता, सिद्ध और मुनीन्द्र अर्ध्य लेकर सदा सामने खड़े हैं। तपस्वियों के मुकुट में रहने वाले भौंरों की पंक्ति से इनके चरण संयुक्त हैं। इनके पावन चरण मुमुक्षुजनों को मुक्ति देने में तथा कामी पुरुषों की कामना पूर्ण करने में अत्यन्त कुशल हैं। ये परमादरणीया देवी सबकी पूज्या, वर देने में प्रवीण, भक्तों पर कृपा करने में परम कुशल, भगवान विष्णु का पद प्रदान करने वाली तथा विष्णुपदी नाम से सुविख्यात हैं। इन परम साध्वी गंगा देवी की मैं उपासना करता हूँ। ब्रह्मन! इसी ध्यान से तीन मार्गों से विचरण करने वाली कल्याणी गंगा का हृदय में स्मरण करना चाहिये। इसके बाद सोलह प्रकार के उपचारों से इनकी पूजा करें। आसन, पाद्य, अर्घ्य, स्नान, अनुलेपन, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, शीतल जल, वस्त्र, आभूषण, माला, चन्दन, आचमन और सुन्दर शैय्या– ये अर्पण करने के योग्य सोलह उपचार हैं। इन्हें भगवती गंगा को भक्तिपूर्वक समर्पण करके प्रणाम करे और दोनों हाथ जोड़कर स्तुति करे। इस प्रकार गंगा देवी की उपासना करने वाले बड़भागी पुरुष को अश्वमेध-यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसके बाद श्री गंगा जी का परम पुण्यदायक और पापनाशक स्तोत्र सुनाकर फिर भगवान नारायण ने कहा। भगवान नारायण बोले– नारद! राजा भगीरथ उस स्तोत्र से गंगा की स्तुति करके उन्हें साथ ले वहाँ पहुँचे, जहाँ सगर के साठ हजार पुत्र जलकर भस्म हो गये थे। गंगा का स्पर्श करके बहने वाली वायु का स्पर्श होते ही वे राजकुमार तुरंत वैकुण्ठ में चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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