ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 34
वैराग्य हो जाने के कारण मेरे मन में तपस्या करने की बात आती थी। तब पिता जी ने मेरे सामने भगवान के गुणों का जो वर्णन किया था, वह अत्यन्त दुर्गम है। मैं आगम के अनुसार उसे कुछ कहता हूँ, सुनो। वरानने! श्रीकृष्ण के इतने अमित गुण हैं कि उन्हें वे स्वयं ही पूरा नहीं जानते; तब दूसरों की तो बात ही क्या है? जैसे आकाश स्वयं ही अपना अन्त नहीं जानता, उसी तरह भगवान भी अपने गुणों का अन्त नहीं जानते। भगवान सबके अन्तरात्मा एवं सम्पूर्ण कारणों के कारण हैं; वे सर्वेश्वर, सर्वाद्य, सर्ववित और सर्वरूपधारी हैं, वे नित्यस्वरूप, नित्यविग्रह, नित्यानन्द, निराकार, निरंकुश, निःशंक, निर्गुण[1], निरामय, निर्लिप्त, सर्वसाक्षी, सर्वाधार एवं परात्पर हैं। प्रकृति उन्हीं से उत्पन्न हुई है और सम्पूर्ण प्राकृत पदार्थ प्रकृति के कार्य हैं। स्वयं परमपुरुष श्रीकृष्ण ही प्रकृति हैं और वे प्रकृति से परे भी हैं। रूपहीन होते हुए भी भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए वे नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं। उनका दिव्य चिन्मय स्वरूप अत्यन्त कमनीय, सुन्दर और परम मनोहर है। वे नवीन मेघमाला के समान श्याम कान्ति धारण करते हैं। उनकी किशोर अवस्था है। वे गोप वेष में सुशोभित होते हैं। कोटि-कोटि कामदेवों की लावण्यलीला के धाम हैं। उनकी मोहिनी झाँकी मन को मोहे लेती है। उनके नेत्र शरत्काल के मध्याह्न में पूर्णतः विकसित हुए कमलों की शोभा को छीन लेते हैं। उनका मुख शरत्पूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमाओं की शोभा को तिरस्कृत करने वाला है। अमूल्य रत्नों द्वारा निर्मित दिव्य आभूषण उनके श्री अंगों की शोभा बढ़ाते हैं। मन्द मुस्कान से सुशोभित मुख एवं सर्वांग बहुमूल्य पीताम्बर से सतत शोभायमान है। वे परब्रह्मस्वरूप हैं और ब्रह्मतेज से उद्भासित होते हैं। भक्तजनों को सुखपूर्वक उनका दर्शन सुलभ होता है। वे शान्तस्वरूप राधा-वल्लभ अनन्त गुण और महिमा से सम्पन्न हैं। प्रेममयी गोपियाँ सब ओर से घेरकर उन्हें मन्द मुस्कराहट के साथ निहारती रहती हैं। वे रासमण्डल के मध्यभाग में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं। उनके दो भुजाएँ हैं। वे वनमाला से विभूषित हैं और मुरली बजा रहे हैं। मणिराज कौस्तुभ सदा ही उनके वक्षःस्थल को उद्भासित करता रहता है। केसर, रोली, अबीर, कस्तूरी तथा चन्दन से उनका श्री विग्रह चर्चित है। वे मनोहर चम्पा, कमल और मालती की मालाओं से अलंकृत हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्राकृत गुण रहित
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