श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
लीला-पुरुषोत्तम का प्राकट्यवसुदेवजी के पैरों की बेड़ी खुल गयी। लोहे के सुदृढ़ द्वार अपने-आप खुल गये। प्रहरीगण गाढ़ निद्रा में सो गये। वसुदेवजी तो सोच ही रहे थे कि मैं कैसे जाऊँगा; पर देखते-ही-देखते यह अघट घटना घट गयी। भगवान को लेकर चले वसुदेवजी, पर बाहर तो गाढ़ अन्धकार था। आकाश मेघाच्छन्न। बूँदें बरस रहीं थीं। लीलामय भगवान के श्रीअंग से ज्योति प्रकट हुई और उसके प्रकाश में वसुदेवजी को मार्ग दिखायी देने लगा। भगवान के सिर पर अनन्तदेव ने अपने फनों का छाता बना दिया। उनके दिव्य शरीर पर जल की एक बूँद भी नहीं लगी। वसुदेवजी यमुना-किनारे पहुँचे। देखा, यमुना में तूफान आ रहा है। बड़ी ऊँची-ऊँची तरंगें नाच रही हैं। भयानक भँवर पड़ रहे हैं। वसुदेवजी फिर भयभीत हो गये। इतना चमत्कार अभी-अभी देखकर आये। पर भगवान की माया बड़ी विचित्र है। आगे बढ़ने का साहस नहीं हुआ। एक जगह यह कथा आती है कि उसी समय महामाया ने सियार का रूप धारण किया और वसुदेवजी के सामने ही वह सियार यमुना के पार हो गया। यह देखकर वसुदेवजी को साहस हुआ। गोद में भगवान थे, पर साहस नहीं। यही जीव के विश्वास की कमी है। भगवान को लेकर वसुदेवजी यमुना में उतरे! एक विचित्र कथा ऐसी मिलती है कि यमुना ने सोचा कि ‘प्रभु मेरे ऊपर से चले जा रहे हैं। मैं एक बार भी उनका आलिंगन न करूँ?’ बड़े जोर की एक तरंग उठी और शिशु श्यामसुन्दर को जल में ले गयी। वसुदेवजी हाय-हाय कर उठे। यमुना तो उस समय दर्शन की लालसा से, आलिंगन की इच्छा से नाच रही थी। वास्तव में वह तूफान नहीं था, था यमुना का आनन्द-नृत्य। पर वसुदेवजी व्याकुल हो गये और उनकी व्याकुलता को देखकर भगवान ने यमुना से कहा कि ‘मेरे पिता संत्रस्त हैं। मुझे जल्दी उनकी गोद में पहुँचा दो।’ यमुना ने कहा, ‘महाराज! आज्ञा शिरोधार्य है; मैं यह एक वरदान चाहती हूँ कि आपकी बाललीला सारी-की-सारी मेरे ही तटपर हो।’ भगवान ने ‘तथास्तु’ कह दिया और वे पिता की गोद में आ गये। वसुदेवजी नन्दबाबा के महल में पहुँचे। वहाँ भी सब लोग भगवान की माया से निद्राग्रस्त थे। वसुदेवजी ने सूतिकागार में जाकर यशोदा की अभी-अभी जन्मी हुई कन्या महामाया उठाया और श्रीकृष्ण को वहाँ सुलाकर वे लौट आये। वस्तुतः महामाया के प्राकट्य के कुछ ही क्षणों बाद सबको नींद आ गयी थी। यशोदा भी भूल गयी थीं कि मेरे पुत्र हुआ है या कन्या-‘निद्रयापगतस्मृतिः’। |
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