दिनेश चन्द (वार्ता | योगदान) |
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राक्षसों-असुरों पर क्रोध करके वध के द्वारा उनका उद्धार करते हैं, यह भी ‘क्रोध’ है। [[यशोदा]] मैया का स्तन्य-पान करने से कभी अघाते ही नहीं और प्रेमीजनों को सुख देने से कभी तृप्त होते ही नहीं, यह उनका '''‘लोभ’''' है। माता की छड़ी तथा लाल आँखें देखकर भयभीत हो आँखों में आँसू भर लेते हैं और भाग छूटते हैं, यह उनका ‘भय’ है। अपनी जादूभरी तिरछी नजर से देखकर और मुरली-ध्वनि सुनाकर सबके चित्तवित्त की नित्य चोरी करते रहते हैं, यह उनकी ‘चोरी’ है। अथवा गोपीजनों के मन में जब श्रीकृष्ण को माखन खिलाने की नयी पद्धति आती है और वे यह चाहती हैं कि श्रीकृष्ण हमारे घरां में चोरी से आकर घुस जायँ और हम उन्हें देखती रहें-इस प्रकार उनके मनों में इच्छा उत्पत्र करके उन्ही की इच्छापूर्ति के लिये उनके घरों से माखन चुराकर खाना भी ‘चोरी’ है। प्रेमियों के मनों को चुराना तो उनका स्वभाव ही है। प्रेमियों को चिरकाल तक विरहयातनाका सुख देते रहते हैं, यह उनका ‘परपीडन’ है और प्रेम रस की वृद्धि के लिये वाकछल करना ‘मिथ्याभाषण’ है। अथवा स्वयं स्वरूपतः कुछ भी नहीं खाने वाले होने के कारण मैया से कहते हैं ‘मैने मिट्टी नहीं खायी’- यह भी मिथ्याभाषण है। | राक्षसों-असुरों पर क्रोध करके वध के द्वारा उनका उद्धार करते हैं, यह भी ‘क्रोध’ है। [[यशोदा]] मैया का स्तन्य-पान करने से कभी अघाते ही नहीं और प्रेमीजनों को सुख देने से कभी तृप्त होते ही नहीं, यह उनका '''‘लोभ’''' है। माता की छड़ी तथा लाल आँखें देखकर भयभीत हो आँखों में आँसू भर लेते हैं और भाग छूटते हैं, यह उनका ‘भय’ है। अपनी जादूभरी तिरछी नजर से देखकर और मुरली-ध्वनि सुनाकर सबके चित्तवित्त की नित्य चोरी करते रहते हैं, यह उनकी ‘चोरी’ है। अथवा गोपीजनों के मन में जब श्रीकृष्ण को माखन खिलाने की नयी पद्धति आती है और वे यह चाहती हैं कि श्रीकृष्ण हमारे घरां में चोरी से आकर घुस जायँ और हम उन्हें देखती रहें-इस प्रकार उनके मनों में इच्छा उत्पत्र करके उन्ही की इच्छापूर्ति के लिये उनके घरों से माखन चुराकर खाना भी ‘चोरी’ है। प्रेमियों के मनों को चुराना तो उनका स्वभाव ही है। प्रेमियों को चिरकाल तक विरहयातनाका सुख देते रहते हैं, यह उनका ‘परपीडन’ है और प्रेम रस की वृद्धि के लिये वाकछल करना ‘मिथ्याभाषण’ है। अथवा स्वयं स्वरूपतः कुछ भी नहीं खाने वाले होने के कारण मैया से कहते हैं ‘मैने मिट्टी नहीं खायी’- यह भी मिथ्याभाषण है। | ||
+ | <center>'''उपसंहार'''</center> | ||
+ | [[श्रीकृष्ण]] के अनन्त गुणों का कोई भी वर्णन नहीं कर सकता। हमारा बड़ा सौभाग्य है कि जिस भारत-भूमि में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए, उसी में आज हम भी जीवन धारण कर रहे हैं और तुच्छ मच्छर के अनन्त आकाश में उड़ने के सदृश उनके गुणगान का प्रयास कर रहे हैं। आप लोगों ने मुझको कृपापूर्वक यह सौभाग्य प्रदान किया, इसके लिये मै आपके प्रति हृदय से कृतज्ञता प्रकट करता हूँ और आज्ञानुसार [[श्रीकृष्ण]] मन्दिर का उद्घाटन करता हूँ। | ||
+ | ‘बोलो आनन्दकन्द भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की जय!’ | ||
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16:17, 13 जून 2017 का अवतरण
श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्ण के अनन्त सद्रुण हैं, उनका वर्णन कौन कर सकता है। पर जब वे पूर्ण मानव हैं, पूर्ण भगवान हैं, तब उनमें ‘तामसी’ कहे जाने वाले भावों का भी समावेश होना चाहिये; वे स्वयं ही कहते हैं-
‘जितने भी सात्विक, राजस, तामस भाव हैं- सब मुझसे ही होते हैं, यों जानो।’- तब बेचारे ये राजस, तामस भाव कहाँ जायँ? सो राजस भाव तो प्रवृति में है ही। तामस भावों में काम, क्रोध, लोभ, भय, चोरी, परपीड़न, मिथ्याभाषण आदि माने जाते हैं। अतः श्रीकृष्ण में भी काम है- प्रेममयी गोपांगनाओं के मधुर रस के तथा वात्सल्यमयी श्रीयशोदा मैया के वात्सल्य रस के आस्वादन की लालसा इन्हें नित्य रहती है, यह उनका ‘काम’ है। इसके अतिरिक्त, वे अपने भक्तों की- प्रेमियों की सदिच्छा पूर्ण करने की सदा कामना करते हैं। यह भी उनका ‘काम’ है। बाल लीला में गोद से उतार देन पर माता पर क्रोध करते हैं तथा दही का मटका फोड़ डालते है- यह ‘क्रोध’ है। राक्षसों-असुरों पर क्रोध करके वध के द्वारा उनका उद्धार करते हैं, यह भी ‘क्रोध’ है। यशोदा मैया का स्तन्य-पान करने से कभी अघाते ही नहीं और प्रेमीजनों को सुख देने से कभी तृप्त होते ही नहीं, यह उनका ‘लोभ’ है। माता की छड़ी तथा लाल आँखें देखकर भयभीत हो आँखों में आँसू भर लेते हैं और भाग छूटते हैं, यह उनका ‘भय’ है। अपनी जादूभरी तिरछी नजर से देखकर और मुरली-ध्वनि सुनाकर सबके चित्तवित्त की नित्य चोरी करते रहते हैं, यह उनकी ‘चोरी’ है। अथवा गोपीजनों के मन में जब श्रीकृष्ण को माखन खिलाने की नयी पद्धति आती है और वे यह चाहती हैं कि श्रीकृष्ण हमारे घरां में चोरी से आकर घुस जायँ और हम उन्हें देखती रहें-इस प्रकार उनके मनों में इच्छा उत्पत्र करके उन्ही की इच्छापूर्ति के लिये उनके घरों से माखन चुराकर खाना भी ‘चोरी’ है। प्रेमियों के मनों को चुराना तो उनका स्वभाव ही है। प्रेमियों को चिरकाल तक विरहयातनाका सुख देते रहते हैं, यह उनका ‘परपीडन’ है और प्रेम रस की वृद्धि के लिये वाकछल करना ‘मिथ्याभाषण’ है। अथवा स्वयं स्वरूपतः कुछ भी नहीं खाने वाले होने के कारण मैया से कहते हैं ‘मैने मिट्टी नहीं खायी’- यह भी मिथ्याभाषण है। श्रीकृष्ण के अनन्त गुणों का कोई भी वर्णन नहीं कर सकता। हमारा बड़ा सौभाग्य है कि जिस भारत-भूमि में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए, उसी में आज हम भी जीवन धारण कर रहे हैं और तुच्छ मच्छर के अनन्त आकाश में उड़ने के सदृश उनके गुणगान का प्रयास कर रहे हैं। आप लोगों ने मुझको कृपापूर्वक यह सौभाग्य प्रदान किया, इसके लिये मै आपके प्रति हृदय से कृतज्ञता प्रकट करता हूँ और आज्ञानुसार श्रीकृष्ण मन्दिर का उद्घाटन करता हूँ। ‘बोलो आनन्दकन्द भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की जय!’ |
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