श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
संसार में जितने भी ग्रन्थ हैं, उनमें भगवद्गीता-जैसे सूक्ष्म और उन्नत विचार कहीं नहीं मिलते। जिस समय मैंने इसको पढ़ा, उस समय मैं विधाता का सदा के लिये ऋणी बन गया कि उन्होंने मुझको इस ग्रन्थ का परिचय प्राप्त करने के लिये जीवित रखा। आध्यात्मिक काव्य का जो सच्चा आदर्श है, उसके जितने समीप भगवद्गीता पहुँची है, उतना इस विषय का छोटा-सा भी प्राचीन ग्रन्थ-जो हमें आज उपलब्ध है, नहीं पहुँच सका है। जिन्हें लोग आध्यात्मिक या उपदेशात्मक काव्य कहते हैं, उनसे तो यह ग्रन्थ बिल्कुल ही निराला है। यह सब कुछ होने के साथ ही श्रीकृष्ण को ‘पॅूंजीपति कैंस’ तथा उसके अनुयायियों के विरोधी ‘जननेता’ भी कह सकते हैं, जिन्होंने महान क्रान्ति करके अत्याचारी का सपक्ष विनाश किया और उग्रसेन को राजा बनाकर मानो जन-राज्य की स्थापना की तथा देश को आसुरी अधिकार से मुक्त किया। श्रीकृष्ण ‘समाज सुधारक’ भी हैं। उन्होंने गोवर्धन-पूजा की नयी प्रथा चलायी तथा और भी बहुत सुधार किये और दृढ़ता के साथ उनका पालन किया-कराया। गरीबों के साथ मिलकर रहने में उनको सदा ही आनन्द आता था। इससे भी वे गरीबों के बन्धु माने जाते हैं। वे स्त्रीजाति के भी बड़े रक्षक थे तथा उनका सम्मान करते थे। व्रज की गोपरमणियाँ इसका प्रत्यक्ष उदारण हैं। एक बड़ी विचित्र घटना है। प्राग्ज्योतिषपुर में[1] राजकन्याएँ कैद थीं। श्रीकृष्ण ने भौमासुर का वध करके उन कन्याओं को छुड़ाया। पर उनसे अब विवाह कौन करता? अतः श्रीकृष्ण ने उन कन्याओं पर दया करके उन्हें अपनाया तथा स्वयं उनको अपनी रानी बनाना स्वीकार किया। |
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