श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीमद्भागवद्गीता भारत के विभिन्न मतों को मिलाने वाली रज्जु तथा राष्ट्रिय जीवन की अमूल्य सम्पत्ति है। भारतवर्ष का राष्ट्रिय धर्म-ग्रन्थ बनने के लिये जिन-जिन तत्त्वों की आवश्यकता है, वे सब श्रीमद्भागवदगीता में मिलते हैं। इसमें केवल उपर्युक्त बातें ही नहीं हैं, अपितु यह सबसे बढ़ कर भावी विश्व धर्म का धर्म-ग्रन्थ है। भारत वर्ष के प्रकाश पूर्ण अतीत का यह महादान मनुष्य जाति के और भी उज्ज्वल भविष्य का निर्माता है। इतने उच्च कोटि के विद्वानों के पश्चात जो मैं इस आश्चर्य जनक काव्य को अनूदित करने का साहस कर रहा हूँ, वह केवल इन विद्वानों के परिश्रम से उठाये हुए लाभ की स्मृति रूप में है और इसका दूसरा कारण यह भी है कि भारत वर्ष के इस सर्वप्रिय काव्यमय दार्शनिक ग्रन्थ के बिना अंग्रेजी-साहित्य निश्चय ही अपूर्ण रहेगा। हम देखते हैं कि इस ग्रन्थ में श्रीकृष्ण, जो भगवान विष्णु के पूर्णावतार थे, साक्षात सामने आकर अपने विशिष्ट मोक्ष के सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं। वे भगवान सर्वज्ञ एंव सर्वशक्ति सम्पन्न हैं तथा विश्व के शाश्वत नियन्ता भी हैं। जो लोग उनमें श्रद्धा रखकर उनकी उपासना करते हैं, उन्हें वे कृपा पूर्वक मुक्ति रूपी फल प्रदान कर देते हैं। वे अर्जुन के सम्मुख मस्तक पर मुकुट धारण किये, हाथों में गदा और चक्र लिये, दिव्यमालाम्बर-विभूषित, मनोमोहक सुगन्ध से सुवासित, अनेक नेत्रों और अनेक मुख वाले तेजोमय दिव्य शरीर को धारण किये हुए प्रकट होते हैं। भगवद्गीता के अतिरिक्त ऐसा कोई दूसरा भारतीय ग्रन्थ नहीं है, जिसकी भारत वर्ष में एवं अन्यान्य देशों में दूर-दूर तक इतनी प्रसिद्धि हुई हो और जिसको ईश्वरीय संगीत मान कर हिदुस्तान में लोग इतना प्रेम करते हों। |
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