श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इनमें परकीया-स्वकीया लीला भी वस्तुतः रस-निष्पत्ति के लिये है। इस भेद का आग्रह वस्ततः श्रीकृष्ण के स्वरूप की विस्मृति से ही होता है। श्रीराधा-माधव एक ही सच्चिदानन्दमय वस्तु-तत्त्व है; उसमें न स्त्री है न पुरुष। ब्रह्मवैवर्त पुराण और देवी भागवत में आया है कि इच्छामय, सर्वरूपमय, सर्वकारणकरण, परम शान्त, परम कमनीय, नव-सजल-जलद-श्याम परात्पर भगवान श्रीकृष्ण के वामभाग से मूल प्रकृति रूप में श्रीराधाजी प्रकट हुईं। इन्हीं राधाजी के द्विविध प्रकाश में से एक से लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ। अतएव श्रीकृष्णांगसम्भूता होने से श्रीराधाजी नित्य श्रीकृष्णस्वरूपा ही हैं। श्रीदेवी भागवत में श्रीराधाजी के मन्त्र, उपासना, स्वरूप का और भगवान नारायण के द्वारा उनकी स्तुति का वर्णन है, जो संक्षेप में इस प्रकार है- भगवती श्रीराधा का वान्छाचिन्तामणि सिद्ध मन्त्र है— ‘ऊँ ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा’। असंख्य मुख और असंख्य जिह्वा वाले भी इस मन्त्र का माहात्म्य वर्णन करने में असमर्थ हैं। मूल प्रकृति श्रीराधा के आदेश से सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने भक्तिपूर्वक इस मन्त्र का जप किया था। फिर, उन्होंने विष्णु को, विष्णु ने विराट् ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने धर्म को और धर्म ने मुझ नारायण को इसका उपदेश किया। तब से मैं निरन्तर इस मन्त्र का जप करता हूँ, इसी से ऋषिगण मेरा सम्मान करते हैं। ब्रह्मा आदि समस्त देवता नित्य प्रसन्न चित्त से श्रीराधा की उपासना करते हैं। |
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