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- ‘जो इस भाव राज्य के वासी, रस-लीला-रत परम उदार।
- सखी, सहचरी, दिव्य, मन्जरी, रस-सेवा-विग्रह साकार।।
- उनकी चरणधूलि की अति श्रद्धा से जो सेवा करता।
- तर्कशून्य जो सरस हृदय को उज्ज्वल भावों से भरता।।
- रहता तुच्छ घृणित भोगों से तथा मुक्ति से सदा विरक्त।
- जिसका हृदय निरन्तर रहता राधा-माधव-चरणासक्त।।
- भाव-राज्य के जन महान का वही कृपा-कण पा सकता।
- वही परम इस भाव-राज्य की सीमामें जन जा सकता।।
नित्य रासेश्वरी, नित्य निकुंजेश्वरी श्रीराधा और उनके प्रियतम श्रीकृष्ण में तनिक भी भेद नहीं है। पर लीला-रसास्वादन के लिये श्रीकृष्ण की स्वरूप भूता परमाह्लादिनी श्रीराधा सदा श्रीकृष्ण का समाराधन करती रहती हैं और श्रीकृष्ण भी उनका प्रेमाराधन करते रहते हैं। रस-सुधा-सागर ये श्रीराधा-माधव एक ही तत्त्व मय शरीर के दो लीला स्वरूप बने हुए एक-दूसरे को आनन्द प्रदान करते रहते हैं-
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