श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
वास्तव में श्री, विजय, विभूति और ध्रु नीति- ये सब गुण भगवान में और अर्जुन में हरदम, विद्यमान रहते हैं। उपर्युक्त दो विभाग तो मुख्यता को लेकर किए गए हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण और धनुर्धारी अर्जुन- ये दोनों जहाँ रहेंगे, वहाँ अनन्त ऐश्वर्य, अनन्य माधुर्य, अनन्त सौशील्य, अनन्त सौजन्य, अनन्त सौंदर्य आदि दिव्य गुण रहेंगे ही। धृतराष्ट्र का विजय की गूढ़ाभिसंधिरूप जो प्रश्न है, उसका उत्तर संजय यहाँ सम्यक रीति से दे रहे हैं। तात्पर्य है कि पाण्डुपुत्रों की विजय निश्चित है, इसमें कोई संदेह नहीं है। ज्ञानयज्ञः सुसम्पन्नः प्रीतये पार्थसारथेः ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विक्रमसंवत्सरे 2042
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