श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
पैसे तो काम करने से ही मिलते हैं, बिना काम किए पैसे मिलते हैं क्या? पैसे तो काम करने से ही मिलते हैं, बिना काम किए पैसे पैसा देगा कौन? यदि कोई जंगल में जाकर दिनभर मेहनत करे तो क्या उसको पैसे मिल जाएँगे? नहीं मिल सकते। उसमें यह देखा जाएगा कि किसके कहने से काम किया और किसकी जिम्मेवारी रही। अगर कोई नौकर काम को बड़ी तत्परता, चतुरता और उत्साह से करता है, पर काम करता है केवल मालिक की प्रसन्नता के लिए तो मालिक उसको मजदूरी से अधिक पैसे भी दे देता है और तत्परता आदि गुणों को देखकर उसको अपने खेत का हिस्सेदार भी बना देता है। ऐसे ही भगवान मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। अगर कोई मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। अगर कोई मनुष्य भगवान की आज्ञा के अनुसार, उन्हीं की प्रसन्नता के लिए सब कार्य करता है, उसे भगवान दूसरों की अपेक्षा अधिक ही देते हैं; परंतु जो भगवान के सर्वथा समर्पित होकर सब कार्य करता है, उस भक्त के भगवान भी भक्त बन जाते हैं![1] संसार में कोई भी नौकर को अपना मालिक नहीं बनाता; परंतु भगवान शरणागत भक्त को अपना मालिक बना लेते हैं। ऐसी उदारता केवल प्रभु में ही है। ऐसे प्रभु के चरणों की शरण न होकर जो मनुष्य प्राकृत-उत्पत्ति-विनाशशील पदार्थों के पराधीन रहते हैं, उनकी बुद्धि सर्वथा ही भ्रष्ट हो चुकी है। वे इस बात को समझ ही नहीं सकते कि हमारे सामने प्रत्यक्ष उत्पन्न और नष्ट होने वाले पदार्थ हमें कहाँ तक सहारा दे सकते हैं। संबंध- जिस प्रकार कर्मयोग में कर्मों का अपने साथ संबंध नहीं रहता, ऐसे ही सांख्यसिद्धांत में भी कर्मों का अपने साथ किञ्चिन्मात्र भी संबंध नहीं रहता- इसका विवेचन आगे करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एवं स्वभक्तयो राजन् भगवान् भक्तभक्तिमान्। (श्रीमद्भा. 10।86।59)
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