श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तशो अध्याय
सात्त्विक भाव, आचरण और विचार दैवी-संपत्ति के होते हैं और राजसी-तामसी भाव, आचरण और विचार आसुरी संपत्ति के होते हैं। संपत्ति के अनुसार ही निष्ठा होती है अर्थात मनुष्य के जैसे भाव, आचरण और विचार होते हैं, उन्हीं के अनुसार उसकी स्थिति (निष्ठा) होती है। स्थिति के अनुसार ही आगे गति होती है। आप कहते हैं कि शास्त्रविधि का त्याग करके मनमाने ढंग से आचरण करने पर सिद्धि, सुख और परमगति नहीं मिलती, तो जब उनकी निष्ठा का ही पता नहीं, फिर उनकी गति का क्या पता लगे? इसलिए आप उनकी निष्ठा बताइये, जिससे पता लग जाए कि वे सात्त्विकी गति में जानने वाले हैं या राजसी-तामसी गति में। ‘कृष्ण’ का अर्थ है- खींचने वाला। यहाँ ‘कृष्ण’ संबोधन का तात्पर्य यह है कि मालूम देता है कि आप ऐसे मनुष्यों को अंतिम समय में किस ओर खींचेंगे? उनको किस गति की तरफ ले जाएंगे? छठे अध्याय के सैंतीसवें श्लोक में भी अर्जुन ने गति विषयक प्रश्न में ‘कृष्ण’ संबोधन दिया है- ‘कां गतिं कृष्ण गच्छति’। यहाँ भी अर्जुन का निष्ठा पूछने का तात्पर्य गति में ही है। मनुष्य को भगवान खींचते हैं या वह कर्मों के अनुसार स्वयं खींचा जाता है? वस्तुतः कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है, पर कर्मफल के विधायक होने से भगवान का खींचना संपूर्ण फलों में होता है। तामसी कर्मों का फल नरक होगा, तो भगवान नरकों की तरफ खींचेंगे। वास्तव में नरकों के द्वारा पापों का नाश करके प्रकारान्तर से भगवान अपनी तरफ ही खींचते हैं। उनका किसी से भी वैर या द्वैष नहीं है। तभी तो आसुरी योनियों में जाने वालों के लिए भगवान कहते हैं कि वे मेरे को प्राप्त न होकर अधोगति में चले गये।[2] कारण कि उनका अधोगति में जाना भगवान को सुहाता नहीं है। इसलिए सात्त्विक मनुष्य हो, राजस मनुष्य हो या तामस मनुष्य हो, भगवान सबको अपनी तरफ ही खींचते हैं। इसी भाव से यहाँ ‘कृष्ण’ संबोधन आया है। संबंध- शास्त्रविधि को न जानने पर भी मनुष्यमात्र में किसी न किसी प्रकार की स्वभावजा श्रद्धा तो रहती ही है। उस श्रद्धा के भेद आगे के श्लोक में बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क्रोध का कारण रजोगुण है और कार्य तमोगुण है।
- ↑ गीता 16:20
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