श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
पंचदश अध्याय
शरीरं यदवान्प्रोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः । अर्थ- जैसे वायु गंध के स्थान से गंध को ग्रहण करके ले जाती है, ऐसे ही शरीरादि का स्वामी बना हुआ जीवात्मा भी जिस शरीर को छोड़ता है, वहाँ से मनसहित इंद्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमें चला जाता है। व्याख्या- ‘वायुर्गन्धानिवाशयात्’ – जिस प्रकार वायु इत्र के फोहे से गंध ले जाती है; किंतु वह गंध स्थायी रूप से वायु में नहीं रहती; क्योंकि वायु और गंध का संबंध नित्य नहीं है इसी प्रकार इंद्रियाँ, मन, बुद्धि, स्वभाव आदि- (सूक्ष्म और कारण- दोनों शरीरों) को अपना मानने के कारण जीवात्मा उनको साथ लेकर दूसरी योनि में जाता है। जैसे वायु तत्त्वतः गंध से निर्लिप्त है, ऐसे ही जीवात्मा भी तत्त्वतः मन, इंद्रियाँ, शरीरादि से निर्लिप्त है; परंतु इन मन, इंद्रियाँ, शरीरादि में मैं-मेरेपन की मान्यता होने के कारण वह (जीवात्मा) इनका आकर्षण करता है। जैसे वायु आकाश का कार्य होते हुए भी पृथ्वी के अंश गंध को साथ लिए घूमती है, ऐसे ही जीवात्मा परमात्मा का सनातन अंश होते हुए भी प्रकृति के कार्य (प्रतिक्षण बदलने वाले) शरीरों को साथ लिए भिन्न-भिन्न योनियों में घूमता है। जड होने के कारण वायु में यह विवेक नहीं है कि वह गंध को ग्रहण न करे; परंतु जीवात्मा को तो यह विवेक और सामर्थ्य मिला हुआ है कि वह जब चाहे, तब शरीर से संबंध मिटा सकता है। भगवान ने मनुष्य मात्र को यह स्वतंत्रता दे रखी है कि वह चाहे जिससे संबंध जोड़ सकता है और चाहे जिससे संबंध तोड़ सकता है। अपनी भूल मिटाने के लिए केवल अपनी मान्यता बदलने की आवश्यकता है कि प्रकृति के अंश इन स्थूल, सूक्ष्म और कारण-शरीरों से मेरा (जीवात्मा का) की संबंध नहीं है। फिर जन्म-मरण के बंधन से सहज ही मुक्ति है। भगवान ने यहाँ तीन शब्द दृष्टांत के रूप में दिए हैं- (1) वायु, (2) गंध और (3) आशय। ‘आशय’ कहते हैं स्थान को; जैसे- जलाशय (जल+आशय) अर्थात जल का स्थान। यहाँ आशय नाम स्थूल शरीर का है। जिस प्रकार गंध के स्थान (आशय) इत्र के फोहे से वायु गंध ले जाती है और फोहा पीछे पड़ा रहता है, इसी प्रकार वायु रूप जीवात्मा गंधरूप सूक्ष्म और कारण-शरीरों को साथ लेकर जाता है, तब गंध का आशय-रूप स्थूल शरीर पीछे रह जाता है। ‘शरीरं यदवाप्नोति......गृहीत्वैतानि संयाति’- यहाँ ‘ईश्वर’ पद जीवात्मा का वाचक है। इस जीवात्मा से तीन खास भूलें हो रही हैं-
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