श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
पंचदश अध्याय
परमात्मा का अंश होने के कारण जीव वास्तव में सदा परमात्मा के ही आश्रित रहता है; परंतु परमात्मा से विमुख होने के बाद (आश्रय लेने का स्वभाव न छूटने के कारण) वह भूल से नाशवान संसार का आश्रय लेने लगता है, जो कभी टिकता नहीं। अतः वह दुःख पाता रहता है। इसलिए साधक को चाहिए कि वह परमात्मा से अपने वास्तविक संबंध को पहचान कर एकमात्र परमात्मा के शरण हो जाए। संबंध- जो महापुरुष आदिपुरुष परमात्मा के शरण होकर परमपद को प्राप्त होते हैं, उनके लक्षणों का वर्णन आगे के श्लोक में करते हैं। |
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