श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्दश अध्याय
अच्छे काम करने वाला मनुष्य यदि अंत समय में तमोगुण की तात्कालिक वृत्ति के बढ़ने पर मरकर मूढ़योनियों में भी चल जाए, तो वहाँ भी उसके गुण, आचरण अच्छे ही होंगे, उसका स्वभाव अच्छे काम करने का ही होगा।
जैसे, भरतमुनि का अंत समय में तमोगुण की वृत्ति में अर्थात हरिण के चिन्तन में शरीर छूटा, तो वे मूढ़योनियों वाले हरिण बन गए। परंतु उनका मनुष्यजन्म में किया हुआ त्याग, तप हरिण के जन्म में भी वैसा ही बना रहा। वे हरिणयोनि में भी अपनी माता के साथ नहीं रहे, हरे पत्ते न खाकर सूखे पत्ते ही खाते रहे, आदि। ऐसी सावधानी मनुष्यों में भी बहुत कम होती है, जो कि भरतमुनि की हरिणजन्म में थी।
संबंध- अंतकाल में गुणों के तात्कालिक बढ़ने पर मरने वाले मनुष्यों की ऐसी गतियाँ क्यों होती हैं- इसे आगे के श्लोक में बताते हैं।
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