श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
षोडश अध्याय
उत्तर- सत्य-असत्य और धर्म-अधर्म आदि को यथार्थ न समझना या उनके सम्बन्ध में विरीत निश्चय कर लेना ही यहाँ ‘अज्ञान’ है। प्रश्न- ‘आसुरीसम्पद्’ किसको कहते हैं और ये सब आसुरीसम्पद् से युक्त पुरुष के लक्षण हैं- इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- भगवान् की सत्ता को न मानने वाले उनके विरोधी नास्तिक मनुष्यों को ‘असुर’ कहते हैं। ऐसे लोगों में जो दुर्गुण और दुराचारों का समुदाय रहता है, उसे आसुरीसम्पद् कहते हैं। ये सब आसुरीसम्पद् से युक्त पुरुष के लक्षण हैं, इस कथन से भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि इस श्लोक में दुर्गुण और दुराचारों की समुदायरूप आसुरीसम्पद् संक्षेप में बतलायी गयी है। अतः ये सब या इनमें से कोई भी लक्षण जिसमें विद्यमान हो, उसे आसुरीसम्पदा से युक्त समझना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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