श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
उत्तर- इस वाक्य में भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि समस्त प्राणियों के जितने भी शरीर हैं, उन समस्त शरीरों में एक ही आत्मा है। शरीरों के भेद से अज्ञान के कारण आत्मा में भेद प्रतीत होता है, वास्तव में भेद नहीं है और वह आत्मा सदा ही अवध्य है, उसका कभी किसी भी साधन से कोई भी नाश नहीं कर सकता। प्रश्न- ‘इस कारण सम्पूर्ण प्राणियों के लिये तू शोक करने को योग्य नहीं है’ इस वाक्य का क्या भाव है? उत्तर- इस वाक्य में हेतुवाचक ‘तस्मात्’ पद का प्रयोग करके भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि इस प्रकरण में यह बात भली-भाँति सिद्ध हो चुकी है कि आत्मा सदा-सर्वदा अविनाशी है, उसका नाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है; अतः तुम्हें किसी भी प्राणी के लिये शोक करना उचित नहीं है; क्योंकि जब उसका नाश किसी भी काल में किसी भी साधन से हो ही नहीं सकता, तब उसके लिये शोक करने का अवकाश ही कहाँ है? अतएव तुम्हें किसी के भी नाश की आशंका से शोक न करके युद्ध के लिये तैयार हो जाना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज