द्वितीय अध्याय
प्रश्न- यहाँ ‘वासांसि’ और ‘शरीराणि’ दोनों ही पद बहुवचनान्त हैं। कपड़ा बदलने वाला मनुष्य तो एक साथ भी तीन-चार पुराने वस्त्र त्यागकर नये धारण कर सकता है; परंतु देही यानी जीवात्मा तो एक ही पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे एक ही नये शरीर को प्राप्त होता है। एक साथ बहुत-से शरीरों का त्याग या ग्रहण युक्ति से सिद्ध नहीं है। अतएव यहाँ शरीर के लिये बहुवचन का प्रयोग अनुचित प्रतीत होता है?
उत्तर- (क) जीवात्मा अब तक न जाने कितने शरीर छोड़ चुका है और कितने नये धारण कर चुका है तथा भविष्य में भी जब तक उसे तत्त्वज्ञान न होगा तब तक न जाने कितने असंख्य पुराने शरीरों को त्याग और नये शरीरों को धारण करता रहेगा। इसलिये बहुवचन का प्रयोग किया गया है।
(ख) स्थूल, सूक्ष्म और कारण भेद से शरीर तीन हैं। जब जीवात्मा इस शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाता है तब ये तीनों ही शरीर बदल जाते हैं। मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसके अनुसार ही उसका स्वभाव (प्रकृति) बदलता जाता है। सत्, रज, तम- तीनों गुणमयी व्यष्टि प्रकृति ही यहाँ कारण शरीर है, इसी को स्वभाव कहते हैं। प्रायः स्वभाव के अनुसार ही अन्तकाल में संकल्प होता है और संकल्प के अनुसार ही सूक्ष्मशरीर बन जाता है। कारण और सूक्ष्मशरीर के सहित ही यह जीवात्मा इस शरीर से निकलकर सूक्ष्म के अनुरूप ही स्थूल शरीर को प्राप्त होता है। इसलिये स्थूल, सूक्ष्म और कारण भेद से तीनों शरीरों के परिवर्तन होने के कारण भी बहुवचन का प्रयोग युक्तियुक्त ही है।
प्रश्न- आत्मा तो अचल है, उसमें गमनागमन नहीं होता; फिर देही के दूसरे शरीर में जाने की बात कैसे कही गयी?
उत्तर- वास्तव में आत्मा अचल और अक्रिय होने के कारण उसका किसी भी हालत में गमनागमन नहीं होता; पर जैसे घड़े को एक मकान से दूसरे मकान में ले जाने के समय उसके भीतर के आकाश का अर्थात् घटाकाश का भी घटके सम्बन्ध से गमनागमन सा प्रतीत होता है, वैसे ही सूक्ष्म शरीर का गमनागमन होने से उसके सम्बन्ध से आत्मा में भी गमनागमन की प्रतीति होती है। अतएव लोगों को समझाने के लिये आत्मा में गमनागमन की औपचारिक कल्पना की जाती है। यहाँ ‘देही’ शब्द देहाभिमानी चेतन का वाचक है, अतएव देह के सम्बन्ध से उसमें भी गमनागमन होता-सा प्रतीत होता है। इसलिये देही के अन्य शरीरों में जाने की बात कही गयी।
प्रश्न- वस्त्रों के लिये ‘गृह्णाति’ तथा शरीर के लिये ‘संयाति’ कहा है। एक ही क्रिया से काम चल जाता फिर दो तरह का प्रयोग क्यों किया गया?
उत्तर- ‘गृह्णाति’ का मुख्य अर्थ ‘ग्रहण करना’ है और ‘संयाति’ का मुख्य अर्थ ‘गमन करना’ है। वस्त्र ग्रहण किये जाते हैं, इसलिये यहाँ ‘गृह्णाति’ क्रिया दी गयी है और एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाना प्रतीत होता है, इसलिये ‘संयाति’ कहा गया है।
प्रश्न- ‘नरः’ और ‘देही’- इन दो पदों का प्रयोग क्यों किया गया, एक से भी काम चल सकता था?
उत्तर- ‘नरः’ पद मनुष्यमात्र का वाचक है और ‘देही’ पद समस्त जीव समुदाय का। अतः दोनों ही सार्थक हैं; क्योंकि वस्त्र का ग्रहण या त्याग मनुष्य ही करता है, अन्य जीव नहीं, किंतु एक शरीर से दूसरे शरीर में गमनागमन सभी देहाभिमानी जीवों का होता है, इसलिये वस्त्रों के साथ ‘नरः’ का तथा शरीर के साथ ‘देही’ का प्रयोग किया गया है।
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