द्वादश अध्याय
प्रश्न- ‘अचलम्’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- जो हलन-चलन की क्रिया से सर्वथा रहित हो उसे ‘अचल’ कहते हैं।
प्रश्न- ‘अव्यक्तम्’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- जो किसी भी इन्द्रिय का विषय न हो अर्थात् जो इन्द्रियों द्वारा जानने में न आ सके, जिसका काई रूप या आकृति न हो, उसे ‘अव्यक्त’ कहते हैं।
प्रश्न- ‘अक्षरम्’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- जिसका कभी किसी भी कारण से विनाश न हो, उसे ‘अक्षर’ कहते हैं।
प्रश्न- इन सब विशेषणों के प्रयोग का क्या भाव है? और उस ब्रह्म की श्रेष्ठ उपासना करना क्या है?
उत्तर- उपर्युक्त विशेषणों से निर्गुण-निराकार ब्रह्म के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है; इस प्रकार उस परब्रह्म का उपर्युक्त स्वरूप समझकर अभिन्न भाव से निरन्तर ध्यान करते रहना ही उसकी उत्तम उपासना करना है।
प्रश्न- ‘सर्वभूतहिते रताः’ का क्या भाव है?
उत्तर- ‘सर्वभूतहिते रताः’ से यह भाव दिखलाया है कि जिस प्रकार अविवेकी मनुष्य अपने हित में रत रहता है, उसी प्रकार उन निर्गुण-उपासकों का सम्पूर्ण प्राणियों में आत्मभाव हो जाने के कारण वे समान भाव से सबके हित में रत रहते हैं।
प्रश्न - ‘सर्वत्र समबुद्धयः’ का क्या भाव है?
उत्तर- इससे यह भाव दिखलाया है कि उपर्युक्त प्रकार से निर्गुण-निराकार ब्रह्म की उपासना करने वालों की कही भेदबुद्धि नहीं रहती। समस्त जगत् में एक ब्रह्म से भिन्न किसी की सत्ता न रहने के कारण उनकी सब जगह समबुद्धि हो जाती है।
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