श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
उत्तर- इससे अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि जो मुक्त पुरुषों की परम गति है, जिसे प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं लौटता; वह साक्षात् परम धाम आप ही हैं। प्रश्न- ‘अनन्तरूप’ सम्बोधन का क्या भाव है? उत्तर- जिसके स्वरूप अनन्त अर्थात् असंख्य हों, उसे ‘अनन्तरूप’ कहते हैं। अतएव इस नाम से सम्बोधित करके अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि आपके रूप असीम और अगणित हैं, उनका पार कोई पा ही नहीं सकता। प्रश्न- यह समस्त जगत् आपसे व्याप्त है, इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- इससे अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि सारे विश्व के प्रत्येक परमाणु में आप व्याप्त हैं, इसका कोई भी स्थान आपसे रहित नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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