श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
उत्तर- यहाँ अर्जुन को ‘गुडाकेश’ नाम से सम्बोधित करके भगवान् यह भाव दिखलाते हैं कि तुम निद्रा के स्वामी हो, अतः सावधान होकर मेरे रूप को भलीभाँति देखो ताकि किसी प्रकार का संशय या भ्रम न रह जाय। प्रश्न- ‘अद्य’ पद का क्या अभिप्राय है? उत्तर- ‘अद्य’ पद यहाँ ‘अब’ का वाचक है। इससे भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि तुमने मेरे जिस रूप के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की है, उसे दिखलाने में जरा भी विलम्ब नहीं कर रहा हूँ, इच्छा प्रकट करते ही मैं अभी दिखला रहा हूँ। प्रश्न- ‘सचराचरम्’ और कृत्स्नम्’ विशेषणों के सहित ‘जगत्’ पद किसका वाचक है तथा ‘इह’ और ‘एकस्थम्’ पद का प्रयोग करके भगवान् ने अपने कौन-से शरीर में और किस जगह समस्त जगत् को देखने के लिये कहा है? उत्तर- पशु, पक्षी, कीट, पतंग और देव, मनुष्य आदि चलने-फिरने वाले प्राणियों को ‘चर’ कहते हैं; तथा पहाड़, वृक्ष आदि एक जगह स्थिर रहने वालों को ‘अचर’ कहते हैं। ऐसे समस्त प्राणियों के तथा उनके शरीर, इन्द्रिय, भोगस्थान और भोग सामग्रियों के सहित समस्त ब्रह्माण्ड का वाचक यहाँ ‘कृत्स्नम्’ और सचराचरम्’ इन दोनों विशेषणों के सहित ‘जगत्’ पद है। ‘इह’ पद ‘देहे’ का विशेषण है। इसके साथ ‘एकस्थम्’ पद का प्रयोग करके भगवान् ने अर्जुन को यह भाव दिखलाया है कि मेरा यह शरीर जो कि सारथी के रूप में तुम्हारे सामने रथ पर विराजित है, इसी शरीर के एक अंश में तुम समस्त जगत् को स्थित देखो। अर्जुन को भगवान् ने दसवें अध्याय के अन्तिम श्लोक में जो यह बात कही थी कि मैं इस समस्त जगत् को एक अंश में धारण किये स्थित हूँ, उसी बात को यहाँ उन्हें प्रत्यक्ष दिखला रहे हैं। प्रश्न- और भी जो कुछ तू देखना चाहता है, सो देख-इस कथन का क्या भाव है? उत्तर- इस कथन से भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि इस वर्तमान सम्पूर्ण जगत् को देखने के अतिरिक्त और भी मेरे गुण, प्रभाव आदि के द्योतक कोई दृश्य, अपने और दूसरों के जय-पराजय के दृश्य अथवा जो कुछ भी भूत, भविष्य और वर्तमान की घटनाएँ देखने की तुम्हारी इच्छा हो, उन सबको तुम इस समय मेरे शरीर के एक अंश में प्रत्यक्ष देख सकते हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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