श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
उत्तर- जैसे किसी सत्यवादी के पास पारस, चिन्तामणि या अन्य कोई अद्भुत वस्तु हो और उसके बतलाने पर सुनने वाले मनुष्य को यह पूर्ण विश्वास भी हो जाय कि इनके पास अमुक वस्तु अवश्य है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है; तथापि वह अद्भुत वस्तु पहले कभी देखी हुई न होने के कारण यदि उसके मन में उसे देखने की उत्कट इच्छा हो जाय और वह उसे प्रकट कर दे तो इससे विश्वास में कमी होने की कौन-सी बात है? इसी प्रकार, भगवान् के उस अलौकिक स्वरूप को अर्जुन ने पहले कभी नहीं देखा था, इसलिये उसे देखने की उनके मन में इच्छा जाग्रत् हो गयी और उसको उन्होंने प्रकट कर दिया तो इसमें उनका विश्वास कम था- यह नहीं समझा जा सकता। बल्कि विश्वास था तभी तो देखने की इच्छा प्रकट की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |