श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
नवम अध्याय
इसके बाद रातभर चिन्तामणि उनको भगवान् श्रीकृष्ण की लीला गा-गा कर सुनाती रहीं। बिल्वमंगल पर उसका बड़ा ही प्रभाव पड़ा। वे प्रातःकाल होते ही जगच्चिन्तामणि श्रीकृष्ण के पवित्र चिन्तन में निमग्न होकर उन्मत्त की भाँति चिन्तामणि के घर से निकल पड़े। बिल्वमंगल के जीवन-नाटक का परदा बदल गया। बिल्वमंगल कृष्णवेणी नदी के तट पर रहने वाले महात्मा सोमगिरि के पास गये और उनसे गोपाल-मन्त्रराज की दीक्षा पाकर भजन में लग गये। वे भगवान् का नाम-कीर्तन करते हुए विचरण करने लगे। मन में भगवान् के दर्शन की लालसा जाग उठी; परंतु अभी दुराचारी स्वभाव का सर्वथा नाश नहीं हुआ था। बुरे अभ्यास से विवश होकर उनका मन फिर एक युवती की ओर लगा। बिल्वमंगल उसके घर के दरवाजे पर जा बैठे। घर के मालिक ने बाहर आकर देखा कि एक मलिनमुख ब्राह्मण बाहर बैठा है। उसने कारण पूछा। बिल्वमंगल ने कपट छोड़कर सारी घटना सुना दी और कहा कि ‘मैं एक बार उस युवती को प्राण भरकर देख लेना चाहता हूँ, तुम उसे यहाँ बुलवा दो।’ युवती उसी सेठ की धर्मपत्नी थी। सेठ ने सोचा कि इसमें हानि ही क्या है, यदि उसके देखने से ही इसकी तृप्ति होती हो तो अच्छी बात है। साधु-स्वभाव सेठ अपनी पत्नी को बुलाने के लिये अंदर गया। इधर बिल्वमंगल के मन-समुद्र में तरह-तरह की तरंगों का तूफान उठने लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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