श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
नवम अध्याय
सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए।। शबरी आनन्द सागर में डूब गयी। प्रेम के आवेश में उसकी वाणी रुक गयी और वह बार-बार भगवान् के पावन चरणकमलों में मस्तक टेक-टेककर प्रणाम करने लगी। फिर उसने भगवान् का पूजन किया। फल सामने रखे। भगवान् ने उसकी भक्ति की बड़ाई करते हुए उसकी पूजा स्वीकार की और उसके दिये हुए प्रेम भरे फलों का भोग लगाकर उसे कृतार्थ कर दिया! उसके फलों में भगवान् को कितना अपूर्व स्वाद मिला, इसका वर्णन करते हुए श्रीतुलसीदास जी कहते हैं- घर, गुरुगृह, प्रिय-सदन, सासुरे भई जब जहँ पहुनाई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह इतिहास श्रीरामचरितमानस आदि ग्रंन्थों से लिया गया है।
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