श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
नवम अध्याय
उत्तर- ऋक्, यजुः, साम- इन तीनों वेदों में जो स्वर्ग की प्राप्ति के उपायभूत धर्म बतलाये गये हैं, उनका वाचक ‘त्रयीधर्मम्’ पद है। स्वर्गप्राप्ति के साधनरूप उन धर्मों का यथाविधि पालन करना और स्वर्ग-सुख को ही सबसे बढ़कर प्राप्त करने योग्य वस्तु मानना ‘त्रयीधर्म’ का आश्रय लेना है। भगवान् के स्वरूप-तत्त्व को न जानने वाले सकाम मनुष्य अनन्यचित्त से भगवान् की शरण ग्रहण नहीं करते, भोगकामना के वश में होकर उपर्युक्त धर्म का आश्रय लेते हैं। इसी कारण उनके कर्मों का फल अनित्य होता है और इसीलिये उन्हें फिर मर्त्यलोक में लौटना पड़ता है। किंतु जो पुरुष स्वर्गसुख प्रदान करने वाले इन धर्मों का आश्रय छोड़कर एकमात्र भगवान् के ही शरणागत हो जाते हैं, वे साक्षात् भगवान् को प्राप्त करके सब बन्धनों से सर्वथा छूट जाते हैं। इसलिये उन कृतकृत्य पुरुषों का फिर से जगत् में जन्म नहीं होता। प्रश्न- ‘कामकामाः’ पद का क्या अर्थ है? यह किन पुरुषों का विशेषण है तथा ‘गतागत’ (आवागमन) को प्राप्त होना क्या है? उत्तर- ‘काम’ सांसारिक भोगों का नाम है, और उन भोगों की कामना करने वाले मनुष्यों के लिये ‘कामकामाः’ पद का प्रयोग हुआ है। यह उपर्युक्त स्वर्गप्राप्ति के साधनरूप वेदविहित सकामकर्म और उपासना का अनुष्ठान करने वाले मनुष्यों का विशेषण है, और ऐसे मनुष्यों का जो अपने कर्मों का फल भोगने के लिये बार-बार नीचे और ऊँचे लोकों में भटकते रहना है, वही ‘गतागत’ को प्राप्त होना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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